पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुरानी हिंदी गढवइ-गपति, मिलाना चक्रपति-चक्कबह-वयव । भज्जिय-टूट गया 'भाँज गढ' वाला भज धातु , सस्कृत में भग्न का अर्थ टूटा या हाग होता है, उसी से हिंदी/भागना बना, प्रागे देखी 'ग्रह भग्गा अम्हत्तणा' आदि । [राजा मुज, पुरानी हिंदी का कवि-- --धार के परमार राजा मुज ( वाक्पति राजा द्वितीय, उत्पलराज प्रमोघवर्ष, पृथ्वीवल्लभ अथवा श्रीवल्लभ) ने कल्याण के सोलकी राजा तैलप दूसरे पर चढ़ाई को और तलप ने उसे हराकर निर्दयता से मारा--यह तो ऐतिहानिक सत्य है क्योंकि चालुक्यो के दो लेखो मे इस बात का साभिमान उल्लेख किया है । मुज के मन्त्री का नाम रुद्रादित्य था, यह उसी के वि०म० १०३६ ( मन् ६५६) के दानपन से प्रकट है । मुज का प्रथम दानपन्न न० १०३१ का और उसकी मृत्यु उसके राजकाल मे अमितगति मे सुभाषितरत्नमोह के पूर्ण होने के सवत् १०५० और तैलप को मृत्यु के स० १०५५ के बीच में होनी चाहिए । यो राजा मुज विक्रम को ग्यारहवी शताब्दी के दूसरे चरण में था ( मुज तया भोज के कालनिर्णय के लिये यो ना०प्र० पत्रिका नवीन स०, भाग १, अक २, पृ० १२१--५, और गी० हो० प्रोमा, गोल- कियो का इतिहास, प्रथम भाग, पृ० ७६-८०) । प्रबंध विनामन्ति में लिखा है कि मारे जाने के समय मुज से कहा गया कि अपने प्ट देवता का स्मरण करो तो उसने कहा 'लक्ष्मी गोविंद के पास बनी जायगी, वीरश्री वीरो के घर चली जायगी कितु यश पुज गज के मरने पर सरस्वती निरालव हो जायगी ।' चाहे यह मुज की ग्लना न होकर उम समय के किसी कवि की हो कितु इसमे मदेह नहीं कि यह विना पार विद्वानो का अवलव था । उसके समय मे जैसा पर कहा जा चुका है अमितगति ने सुभाषितरलसदोह बनाया | सिधुराज के पोतिसाच नवसाहसाक चरित का कर्ता पद्मगुप्त, धनपाल, दास्प का कर्ता धनजय और उसका टीकाकार धनिक उसके पाश्रित पे । पिगलस्व का टीकाकारहना- युध उसी के समय मे था । प्रबंधो में और सुभापितापनियो में मुर बनाए कई श्लोक दिए हैं और क्षेमेद ने, जो मुज ने ५० वर्ष ही पाई हुमा, उसका एक श्लोक उद्धृत किया है । अव यह प्रश्न उठता है कि जिन दोहो को व्याख्या हम कर चुके है वे क्या स्वय मुजफे बनाए हैं ? हमारे दश दोहे को मारमा मे शास्त्री कहते है कि यह 'रिपुनारी पाश्च'