पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/४१

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पुरानी हिंदी है कितु इसमे मुज ने अपने ही को सवोधन किया हो तो क्या पाश्च है ? प्रवचिंतामणिकार के समय ( स० १३६१ ) तक तो यह ऐतिह्य य कि ये दोहे मुज के है। जो श्लोक दूसरे कवियो के बनाए जाने गए है और इन प्रवधकारो ने दूसरे कवियो या राजाओं के सिर मढ दिए है उनके कारण ऐरे प्रसिद्ध दोहो पर सदेह नहीं कि जा सकता। ऐसे दोहे दतकथानो मे रह जाते है और दतकथानो को छोडकर उनकी रचना के बारे में कोई प्रमाण नहीं है। वीकानेर के पृथ्वीराज ने राणाप्रताप को सोरठे लिख भेजे, मानसिंह को अकवर ने 'सभी भूमि गोपाल की' वाला दोहा लिख भेजा, नरहरि कवि का 'अग्हुि दत तृन गहहिं' वाला छप्पय अकवर के सामने पेश किया गया, 'ब्रह्म भने सुन शाह अकबर' आदि दोहे वीरवल ही के है, हुलसं वाली उक्तिप्रत्युक्ति खानखाना और तुलसीदाम के बीच मे हुई थी, इत्यादि बातो का ऐतिह्य को छोडकर और क्या प्रमाण हे ? वही प्रमाण यह मानने को है कि ग्यारह्वी शताब्दी के द्वितीय चरण मे, प्रसिद्ध विद्याप्रेमी भोज का चाचा, परमार राजा मुज पुरानी हिंदी का कवि भी था। एक प्रमारण और है-हेमचद्र के व्याकरण मे जो अपभ्रश के उदाहरण दिए है उनमे एक दोहा यह है- वाह बिछोडवि जाहि तुहु हा तेवेंड को दोसु । हित्रयटिठ्य जइ नौसरहि जाएउ मुंज सरोसु ।। अर्थात् वाह बिछुडा कर तू जाता है (या जाती है), मैं भी वैसे ही (जाता हूँ या जाती हूँ) (इसमे) क्या दोष है ? हृदय (मे) स्थित यदि (तू) निकले तो, मुज (कहता है कि, मैं) जानू (कि तू) सरोष है। चौथे चरण का यह अर्थ भी हो सकता है कि 'तो मैं जानूं कि मुज सरोष हैं। दूसरा अर्थ सीधा जान पड़ता है किंतु मुज की कविताओ मे नाम देने की चाल देखकर पहला अर्थ भी असभव नहीं है । यह दोहा हेमचन्द्र के पहले का है। इससे दो ही परिणाम निकाल सकते हैं। एक तो यह कि सूरदास (?) के- बांह छुडाए जात हो निवल जान के मोहि । हिरदे से जब जाहुगे तो मै जानौं तोहि ॥-- इस दोहे के पितामह 'वाह बिछोडवि' आदि दोहे का कर्ता राजा मुज था और यह मज के नाम से प्रकित दोहा स० ११६६ (कुमारपाल की गद्दी- नशीनी का समय जिसके पहले तो हेमचद्र का व्याकरण बन चुका था) से पहले प्रचलित था। दूसरी यह कि यदि दूसरा अर्थ मानें तो जिस नायिका ने.