पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/४३

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३८ पुरानी हिंदी अर्थ-जब यह रावण दस मुंह और एक शरीर वाला जनमा तो माता चर्भ मे प्राकर सोचती हे कि कौन (मे मुख) को दूध पिलाऊँ ? जाईयउ-जायो । वियम्भी-विस्मिता। चितवइ–चितवै । कवरण- कौन । पियावउ-पियाऊँ। खीर-स क्षीर, दूध, सिधी खीर अस्थि ? दूध है क्या (१३) दूसरी समस्या टी-कठि विलुल्लइ काउ ? इसकी पूर्ति कानी चेटी ने ? यो की। कारण वि विरहकरालिइ पड उड्डावियउ वराउ । सहि अच्चभूउ दिठ्ठ मइ कण्ठि विलुल्लइ काउ ।। पाठातर-- --अच्चिभू । 'अच्चम्भुम ठीक होता। अर्थ-किमी विरह से दुखिया स्त्री ने खिझकर विचारे पति को उडा दिया। हे सखि । मैने यह अति अचरज देखा कि अब किसके कठ का सहारा लिया जाय? कलहातरिता पहले तो पति को भगा चुकी है, अब मान टूटने पर पछताती है कि हाय | किसके गले से लिपटूं? कारण-किसी से या कैसे । करालिइ---करालिता (कराल हुई) से । पइ-पति । उड्डावियउ--उडावियो (गुजराती) । वराउ-वराक । अच्च- भूउ-प्रत्यद्भुत-देखो ऊपर (६)। दिठ्ठ-दीठो। मइ-मैं, कर्मवाच्य में कर्ता कारक, 'ने' लगने से (मैंने) दुहरा कारक चिह्न लगता है । कण्ठि-कठ मे । विलुल्लइ-लटका जाता है, विलमा जाता है। काउ किसके। ये दोनो दोहे कुमारपाल प्रतिबोध मे कुछ पाठातरो के साथ दूसरे प्रसग में हैं । अगला लेख देखो। पिछला हेमचद्र मे भी है। (१४) एक समय भोज रात को नगर मे घूम रहे थे कि एक दिगबर को एक गाथा पढते सुना। बेचारा दिगवर तो हो गया था किंतु उसयी हविश पूरी नहीं हुई थी। दूसरे दिन भोज ने उसे बुलाया और उसके मनसूवे जानकर उसे अपना सेनापति बनाया। पीछे उसी कुलचद्र ने अनहिलपट्टन जीतकर जयपत्र प्राप्त किया। वह गाथा या दोहा यह है-- एऊ जम्मु नग्गुह गिउ भडसिरि खग्गु न भग्गु । तिक्खा तुरिया न मारिगया गोरी गलि न लग्गु ॥