पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/४४

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पुरानी हिंदी

D अत्र-यह जन्म अकान्य गया, सुभटो के निर पर ( मेरी ) नयार नहीं टूटी, तीखे (तेज) घोडो का उपभोग नहीं किया, न गोगे (यवनी) के गर्ने लगा। पाठातर-ग्राउ ( याय ), निग्गह, नागह । शास्त्री ने 'भदमिरि सग्ग' को एक पद लेकर प्रर्थ किया है 'मट-धीमा । तिला का अर्थ 'नीटाणु स्त्री कटाक्ष किया है और 'तुरिया' का अयं 'नृनिकादि शय्योतकरण' (रामायण की 'तुराई ) । टानी 'तिरका तुरिया गई कर्कश स्वर-युक्त वाजे ( म० तूर्य ) करते है । एउ--यह, यो । नगुह-निर्ग्रह (म०) निष्फल, शाम्बी कहते है ननोन्ट' मैं नगा या दिगवर हूँ या निगृह ! भड-मारवाडी में वीर यो अचनक 'मर' कहते है, विशेष कर ताने मै । माणियां-उपभोग किया, (म०) मटन किया, मिलानो गारवाडी-मेजा माणीज्यो, गोरी ने माणज्यो ढोला (गीत) । गोरी- नायिका के लिये साधारण शब्द, अब भी हिदी, पजाबी, राजधानी गोनी में पाता है । हेमबद्र न भी इन पद के इन अर्थ का उल्लेख किया है। (१५) प्रवधचिंतामणि की एक प्रति मे उसी होमिलेवाले गुलचन्द्र का (जो कवि भी था और जिसे सुदर कविता के लिये भोज ने एक सुदर दासी दी थी। एक दोहा और दिया है- नव जल भरीया मग्गडा गयरिण घडाई मेह। इत्यतरि जरि प्राविमिइ तउ जाणीमित नहु ।। अर्थ--मार्ग नए ( वरमाती) पानी से भरे है, गान में मेष घटाना है, इस अत्तर (अवसर) मे जो (तू) आवेगा नो नेह जाना जायगा। मज को रसीली तो बरसात में माना अनभव जानकर गवार नायक को पहले ही बुलाती थी, कितु कुलचं उस समय प्राने ही वो नेह को परीक्षा मानता है। भरिया-भरे हुए । मग्गडा--देखो सदेनडो (१)। जरि-जब पति, मारवाडी में जर, जरा अब भी समयवाचक जब के लिये पाता है। जागोनि- जाना जायगा, स० 'स्य' को 'सि' में पहचानो। (१६) भोज ने सभा में बैठकर गुजरातियो के भोलेपन की हमी यो। यहीं पर उम देश के एक प्रादमी ने कहा कि हमारे गोमाले भी प्रापा परिनो से पर-