पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुगनी हिदी ४३ शरगा D (२१) मन्चे दागिना जेप वडामंकित काहूँ यग्गिज माण्द्रीय अम्मीगा गह अर्थ-मब रागा तो (छोटे ) बनिये है, न (मिगन जयसिंह) वडा भारी मेट है, क्या अग्गिज (भागार ) मा (फैलाया ) है (इमने) हमारे गढ के नीचे । (बई व्यापारी में गाने को का दीवाला निकल जाता है।) [टानी का उत्तगर्द का अर्थ-वनिए के पेशे को गो गोग? हमारा गढ़ नीचे पड़ गया।] सव्वे-म० सर्वे । बड्डउ-बडो । वणिज-देशो गर्दा (१)। माडीयउ--देखो मागिया (१४)। अम्मीणा-हमाग, या (१) । ठि- नीचे, पजावी हेट, और जेठ सय हेठ (रामकहानी)! । 1 (२२)

तइ गडूश्रा गिरनार काहूँ मणिमत्सरु धरिउ । मारीना पगार एक्क सिहर न हालिऊँ । अर्थ- हे गुरु (भारी) गिरनार ( पर्वत) 1 तेने मन में वैमा नुछ मन्गर धारण किया कि खगार के मारे जाते समय (अपना) एक गियर भी न गिराया। ( जिमसे शव कुचले जाते या अपने स्वामी के दुग मे नेरी महान- भूति जानी जाती, जमे कि शोक मे भूपण उतार दिए जाने है ) तइ-तै, तेने । गड़ा--(स० गुरुक), भारी मारीता--मारे जाग (भाव लक्षण) । सिहर-शिखर । ढालिउ ----टाल्यो, ढन राना। (२३) जैसल मोडि मवाह बलि वलि विरूप भावी । नइ जिम नवा प्रवाह नवपण विरण प्रायः महि । पाठातर-वरण भावोय, नवयण विन मा नहि । अर्थ-जैसल (जयसिह) का मर्दन क्रिया हमा मेग पान फिर चिम जान पड़ता है, जैसे नदी में नया प्रवाह बिना नवधन ( नए मंग, पगा नवधन ) के नही पाता।