पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/४९

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पुरानी हिंदी "जैसल मोडि मवाह का अर्थ टानी ने किया है 'जैसल, आँसू मत बहारो।' शास्त्री का अर्थ भी सतोपदायक नहीं। यह अर्थ भी हो सकता है कि जैसल का मोडा हुआ ( हमारी राज्यरूपी नदी का ) प्रवाह बुरा लगता है, क्योकि कहाँ नवधन से होनेवाला नदी की बाढ का सुदर प्रवाह और कहीं दूसरे के पराक्रम से मोडा हुमा प्रवाह ? नवधन का अर्थ दोनो ओर लगता है। मोडि-मोडकर, मीड < मर्द । सवाह---मद् + वास, मेरा घर (शास्त्री), मेरे मत मे यो पढना चाहिए जैसलमोडिम-वाह, जैसल का मोडा हुआ वास -या प्रवाह । वलि वलि-मुड मुडकर, फिर फिर। नइ-नदी, सुरवरनई (तुलसीदास)। (२४) 1 वाढी तो वढवारण वीसारता न वीसरह । सोना समा पराण भोगावह पई भोगवीइ। पाठातर-वाटी, तवउ वढमारण, सूना, तह, भोगिव्या । अर्थ-हे वढमाण ( वर्धमान ) शहर तू (गनुप्रो से) काटा गया है तो भी भुलाने से भी नही भूला जाता, ( मै अपने ) सोने के सदृश प्राणो को भोगावह (नदी) को भोग कराऊँगी । (या हे भोगावह ! मैं तुम्हें उन्हे भुक्त कराऊँगी)। पूर्वार्द्ध का टानी का अनुवाद-उस (नवधन) का वढाया हुआ बढवान (उसे) भुलाने से भी नहीं भूलेगा। वाढी--स० वृध के दोनो अर्थ हैं, बढना और काटना। वीसारता- “विसरना, स० वि+रस्मर । समा-बरावर । भोगावह-भोगावत नामक नदी (शास्त्री)। पह-पै (को) या मैं । इन सोरठो में कही कही नवधन तथा खेंगार दोनो को एक ही मान लिया जान पडता है। (२५) हेमचंद्र की माता के उत्तरकर्म के समय कुछ पियो ने विमान भग का अपमान किया। इससे क्रुद्ध होकर हेमचद्र मालवे में डेरा डाले हुए राजा कुमारपाल के पास आए और उदयन मंत्री ने राजा से उनका परिचय कराया । हेमचंद्र ने सोचा कि--