पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/५०

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पुरानी हिदी ४५

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प्रापण पड प्रभु होइन का प्रभु कोज हामि । कज्ज करिषा माग्ग मह बीज उ मागृ न मान्य ।। पाठातर--काज करवा माणु मह । अर्थ-या तो अाप समय हो या (किमी) नमर्थ यो हार में कीजिए। मनायो का कार्य (मिद ) पाने में निो गा नहीं है। आपण----अपने । प:-प, या। होइन- हो । ०-- या जीन:-- दूसरा । माग-मग्न, मार्ग । यात्यि-अपि (म) है, यानी क्यू श्राय न साथ ( =कुछ है ही नहीं ) । (२६ एक दिन हेमचद्र इमारपाल बिहार-मदिर मे पपी ना, प. हाय का सहारा लिए जा रहे थे। वापर नाचनकाली के बरामी पोछे से संचकर कसी जा रही थी। इसपर गपी ने ए... कहा और उमके ठहरते ही हेमचा ने उनकी पूनि बी- सोहागीउ महि पञ्चुयउ जुन पुट्टिहि पच्छतरणिता जमु गुग्ण गत अर्थ-मुहागन को (या सुहाग को ) भी नप्रिया गायक ने ( साथ) उत्तान ( ऊंचा) करती है, जिमका तरहिनन पीठ ने पीछे गुणग्रहण करती है । जिनके गुणो का पीछे ने ग्रहण (वर्णन) fa जाय वह अवश्य ऊँचा (बडा) होता है। गुण-डोरी और सद्गुण दोनो । सोहग्गीउ-मी माग्यवती भी (हि• सुहागिन) : पुट्टिहि-~पीठ से, पुढे (पूछ) ने, (म० पृष्ठ ) प्र पी उ-श्रुति पर ध्यान दो, पीठ पीछे ( हि०), पू०पीछे (रा०) महाविरा पच्छा--पाछे (मारवाडी)। करेइ---करें। (२७) सोरठ के दो चारण 'दहाविद्या' में स्पर्धा करते हुए पाहिलपुर पान मे पाए । शर्त यह थी कि जिसकी रचना को हेमचः प्वामा परेर दूसरे को हरजाना देवे। एक ने हेमचद्र में मिलने पर मोरया --- 11