पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुरानी हिदी तीन बार है कि मुंह नीचा और सिद्धि ऊँची (उपहरी) । कवि को इस अछूती उक्ति पर राजा प्रसन्न हुआ और उसमे दोहा बार बार पढ़वाया । पढकर चारण ने, शिवाजी के सामने भूपण की तरह बै-मवरी ने कहा कि क्या प्रति पाठ पर लाख दोगे? राजा ने तीन लाख दिए । कहानी अधूरी है, हेमचद्र ने किसी को न सराहा। न मालूम उनकी होदाहोदी का क्या हुआ। तुहाला-तुम्हारा, तुहाडा (पजावी) देखो (१) । जाह-जिनमें, जहाँ । [अच्चम्मू-अत्यद्भुत, देखो (६), (१३)। जे चपह-जो दवाते है (चरणो को), पगचपी ( राजस्थानी ) पर दबाना । जैव-जिनवा । पह परोपै । हिट्टा--हेठा, देखो (२१) । पहरी--उपहार दी गई। (म० उपहृता) या ऊपर की, ऊँची । (२६) जब कुमारपाल शन्नु जय तीर्थ मे गए तो वहाँ एक चारण को प्रतिमा के सामने यह सोरठा नी बार पढते देखकर उन्होंने नौ सहस्र दिए-- इनकह फुल्लह माटि देअइ सामी मिद्रि मुह । तिरिण सिउ केही माटी भोलिम जिणवाह ॥ पाठातर--देवइ सिद्धि सुइ केहि साटि कटि (रि), मात्ति (लि ) म, तिणिस। अर्थ-एक फूल के लिये, एक फूल की खातिर, ग्वामी मिल्गुिन (या सी सिद्धि) देते है, इसी तरह है जिनवर प्राप विमतिये (नने) भोले है ? या जिनवर का इतना भोलापन क्यों है ? टानी ने निशिमा का अर्थ किया है 'यह निश्चित है (तनिश्चित ') । इसलिये जिनपर यो कभी न भूलो' (भोलि म )। माटि-लिये, खातिर । तिणि सिउँ-उससे (स कारण ने), (सं० तन्निथया शास्त्री) उसी प्रकार से । केही साटी-किसलिये, दमों (५) किस बदले मे। भोलिम-भोलापन । (३०) कुमारपाल का उत्तराधिकारी और भतीजा अजयपाल बडा निर्दयी था। उसने जैनो पर उतने ही अत्याचार किए जितनी उससे पूर्वज ने भनारमा