पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/५३

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४८ पुरानी हिंदी की थी उसने गिन गिनकर ' विद्वानो और प्रधानो को मारा। पडित रामचद्र ने सौ अथ बनाए थे, उसे तत्ते तावे पर चढ़ा दिया। वेचारा यह दोहा पढकर दांतो से अपनी जीम काटकर वेदना से मर गया। महिवीढह सचराचरह जिरण सिरि दिह गा पाय । तमु अत्यपरण दिणे सरह होडत होइ चिराय ॥ पाठातर---जिणि मिरि दिन्ना, दिगमरमु, होइनु होहु, विराय । अर्थ---पृथ्वी के पीठ पर जिमने मत्रराबर नर (भूमडल) को सिर पर पाँव दिया उभी दिनेश्वर (सूर्य) का अन्त होता है, सच है, जो होना होता है वह देर से कभी न कभी भी होकर रहता है। मह्विीव्ह-- महीपीठ ( मे या का}, पीठा ( म०)--हि० पीटा। सचराचरह (मे या का) । जिरण सिरिदिगा पाय का शास्त्री ने अर्थ किया है जिसने श्री दी प्राय ( 1 ) 1 तमु-तानु । प्रत्थमरण-स० स्तमन अथवरणो प्राथणो (= अम्त), प्राथण ( मायकाल) आँथूणी (= पश्चिम दिशा), राजस्थानी । होउत-भवितव्य ! चौथे चरण का टानी का अनुवाद-'होना पडता है और बहुत काल के लिये होगा। (३१) सिद्धसेन दिवाकर को केतलासर नाम को जाते हुए एक वृद्धवादी मिला उसने रोककर कहा, विवाद करो । सिद्धसेन ने कहा, नगर में चलो, वहाँ पुरवासी मध्यस्थ होगे । वृद्धवादी ने कहा, ये गोमाले ही सभ्य है, ये ही निर्णय कर देंगे। सिद्धसेन ने सस्कृत में बहुत कुछ कहा, फिर वृद्धवादी ने एक गाथा पढ़ी जिसे सुनकर ग्वालो ने कहा तुम ही जीत गए, दूसरा कुछ नही जानता । वह गाथा यह है- नवि मारीयए नवि चोरीयए परदारगमरण निवारीयए । थोवा विहु थोव दाइयए इम सरिग टगमग जाईयए । अर्थन मारिए, न चोरिए, परदारगमन को छोड़िए, थोड़े से भी थोडा दान दीजिए, यो चटपट स्वर्ग जाइए। नवि--न+अपि । थोवा-थोड़ा (स० स्तोक, हिंदी शब्द मे वही 'ड' आया है, स्तोकक) । दाइयए-दीजिए । सग्गि-स्वर्ग मे। टगमगु-झटपट, हडबडाते हुए।