पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/५४

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पुरानी हिंदी ४६ उमग (३१ क ) प्रवध चितामणि मै जितनी पुरानी हिंदी की कविता थी व्याख्यान हो चुका । दो प्रसगो पर उनमें कुछ गद्य भी पाया है और नहीं की कथा रोचक है इसलिये उनका भी उल्लेख यहाँ किया जायगा। कुमारपाल के मत्री साह श्रावड ने कुकुण के राजा मल्लिकार्जुन का जीतकर उसके सिर के माय और जो भेंट राजा के सामने यी उनकी सूची में संस्कृत के साथ कुछ देशभापा दी है। यह यह है--गार- कोडा साडी (शृगारकोटि साडी), माणिकउ पपेवटउ ( माणिक नाम पखेवडा = पक्षपट, दुपट्टा या प्रोढनी, राजस्थानी पछेवडा), पापड हार (पापक्षय हार),"मौक्तिकाना सेडउ (सेडो? = सेटक, नेर या नदी। पट १. प्रवचिंतामणि की इवारत यह है-अंगारकोडी माती १ मागि पछेदडउ २ पापखउ हारु ३ सयोगसिद्धि सिप्रा ४ तदा (महा तया हेमकुभा ३२ स्तथा मौक्तिकाना मेडउ ६ चतुदत हन्ति १ पानारिग १२० कोडी सार्द्ध १४ द्रव्यस्य दड (प० २०३ ) । इसी प्रसग के वर्णन मे जिनमडन के कुमारपाल प्रबंध (मं० १४६२) मे तीन श्लोक दिए हैं जिनमे अर्थ स्पष्ट होता है-- शाटी शृगारकोटचाया मारिणवचनामसम् । पापक्षयङ्कर हार मुक्ताशुक्ति ( = नेउर? ) निपापहाम् ।। हेमान् द्वात्रिंशत कुम्भान् १४ मनु भारप्रमाणत । पण मूटका( - सेडउ ?)स्तु मुक्ताना म्वर्ण कोटीश्चतुदंग ।। विश शत च पात्राणा चतुर्दन्त च दन्तिनम् । श्वेत सेदुकानामान दत्वा नव्यं नवग्रहम् ॥ (प्रात्मानद सभा, भावनगर का सम्करण पन्न ३६, पृ०)। पापक्षय किसी विशेष प्रकार के हार की सजा थी क्योंकि मि जयसिंह का पिता कर्ण ( भोगी कर्ण) अव सोमनाथ का दर्शन परने गया तो उसने प्रतिज्ञा की थी कि पापक्षय हार, चंद्र, मादित्य नाम कुडल और श्रीतिलक नाम अगद (बाजूबद ) पलार न - ( वही प ४ पृ. २)। 'सेउड' के प्रर्य में सरेर राग्नुि कुमारपाल के राजतिलका के वर्णन मे की (पन ३४, ३०१) में पु० हि० ४ (११००-७५)