पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/५७

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५२ पुरानी हिंदी पा कु म 1 पद्य मे है, किंतु ३२ अक्षर का एक अनुष्टुप् श्लोक मानकर श्लोको में गणना करने की पुरानी चाल है । इसकी एक प्रति सं० १४५८ को ताडपत्न पर लिखी हुई सपूर्ण तथा एक उससे पुरानी बिना मिति की खडित मिली थी। उन्ही पर से मुनि जिनविजय जी ने इस महत्वपूर्ण ग्रथ का सपादन किया है और भूमिका में कई बहुत उपयोगी बा बताई हैं जिनमे से कुछ का यहाँ आधार लिया जाता है। सोमप्रभ प्राचार्य वृद्धगच्छ की पट्टावलियो मे महावीर स्वामी से लियालीसवें गिने जाते है । इनके शिष्य जगच्चद्र सूरि ने तपागच्छ की स्थापना की। सोमप्रभाचार्य का बनाया हुआ एक सुमतिनाथ चरित्र प्राकृत मे है जिसमे पांचवें जैन तीर्थकर की कथा और प्रसग से जैनधर्म का उपदेश है । इसकी संख्या साढे नौ हजार ग्रथ (श्लोक) है । दूसरा ग्रथ सूक्तिमुक्तावली है। जो प्रथम पलोक के आरभ के शब्दो से 'सिदूर- प्रकर' या कत्रि के नाम से सोमशतक भी कहलाता है इसमे भी सदाचार और जैनधर्म का उपदेश है। ग्रथ बहुत ही अद्भुत है--वह केवल एक श्लोक है । कितु कवि ने इस श्लोक के सौ अर्थ किए है जिनसे कवि का नाम ही शतार्थी हो गया है। यह एक ही श्लोक व्याख्या के प्रभाव से चौबीसो तीर्थकर, कई जैन प्राचार्य, शिव, विष्ण, आदि अजैन देवो से लेकर स्वर्ण, समुद्र, सिह, हाथी, घोडे प्रादि का वर्णन करता है और जैन प्राचार्य वादिदेव सूरि, प्रसिद्ध वैयाकरण हेमचद्र, गुजरात के चार क्रमागत सोलकी राजा जयसिह (सिद्धराज), कुमारपाल, अजयदेव, मूलराज, कवि सिद्धपाल, सोमप्रभ के गुरु अजितदेव और विजयसिह तथा स्वय कवि सोमप्रभ का वर्णन करके अपने १०० अर्थ पूरे करता . २. १. इतनी अपूर्ण सामग्री पर से भी सपादन बड़ी योग्यता से किया गया है। इतना कहकर यह लिखना कि पृ०६० मे पांच गाथाएं भी गद्य मे घिलमिल छप गई है दोषदर्षिता नही कहलाना चाहिए । क्लाट, इ. ए. जिल्द ११, पृ० २५४ । ३. कल्याणसारसवितानहरेक्षमोह , कातारवारणसमानजयाद्यदेव । धर्मार्थकामदमहोदयधोरवीर सोमप्रभावमरमागमसिद्धसूरे ॥ . .