पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/५९

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५४ पुरानी हिदी वह श्लोक, जिसके आधार पर हम यह कह रहे हैं, त्रुटित है। सेठ अभय- कुमार कुमारपाल के राज्य में धर्मस्थानो का सर्वेश्वर अर्थात् अधिकारी था । कुमारपालप्रतिबोध की प्रशस्ति मे सोमप्रभ ने अपने वृहद्गच्छ (वृद्धगच्छ, बड्डगच्छ) के इन प्राचार्यों का यथाक्रम उल्लेख किया है-मुनिचद्रसूरि और मानदेव (साथ साथ), अजितदेवसूरि (साथ ही देवसूरि आदि), विजयसिंह सूरि, फिर स्वय सोमप्रभ । रचना के पीछे हेमचद्र के शिष्य महेंद्र मुनिराज ने वर्धमान गरिण' और गृणचद्र गरिंग के साथ यह अथ सुना। इन सब बातो को लिखकर यह कहने की आवश्यकता नहीं कि सोमप्रभ सूरि ने सिद्धराज जयसिंह का, कुमारपाल का और हेमचन्द्र का समय देखा था। कुमारपालप्रतिबोध मे ऐतिहासिक विषय इतना ही है कि । अणहिल्लपुर मे सोलंकी मूलराज के पीछे क्रम से चामु डराज, वल्लभराजा ( जगझपण ) दुर्लभराज, भीमराज, कर्णदेव और (सिद्धराज ) जयसिंह हुए । उसके सतानरहित मरने पर मनियो ने कुमारपाल को, जो भीमराज के पुत्र क्षेमराज के पुत्र देवप्रसाद के पुत्र त्रिभुवनपाल का पुन, यो जयसिंह का भतीजा था, गद्दी पर विठाया । उसे धर्मजिज्ञासा हुई तो ब्राह्मणो के पश्वधर्मय यज्ञो के वर्णन से। वह शात न हुई। तब बाहड मनी ने हेमचद्र का परिचय कराया कि गुरु दत्तसूरि ने रायणपुर ( वागड ) के राजा यशोभद्र को उपदेश दिया, राजा गृहस्थाश्रम छोडकर यशोभद्रसूरि बन गया, उसके पोछे प्रद्युम्नसूरि और देवचन्द्रसूरि क्रम से हुए । देव चन्द्रसूरि को मोढ जाति के वैश्य चाच और चाहिनी का पुन चगदेव शिष्य मिला राजा १ यह वर्धमाना गणरत्नमहोदधि का कर्ता वर्धमान नहीं हो सकता क्योंकि गणरत्नमहोदधि की रचना स० ११९७ (ई० ११४०) में हो चुकी थी---1 1 सप्तनवत्यधिकेटवेकादशसु शतेष्वतीतेषु । वर्षाणा विक्रमतो गणरत्नमहोदधिविहित । वह भी सिद्धराज जयसिंह के यहाँ, सभवत हेमचद्र के पहले, और इसने सिर्द्धराजवर्णन नामक काव्य 'भी बनाया था । चालीस वर्ष से कम अवस्था मे गणरत्नमहोदधि के से ग्रथ की कोई क्या रचना करेगा और सं० १२४१ मे वह ८४ वर्ष का होना चाहिए।