पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/६

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पुरानी हिंदी हिंदुस्तान का पुराने से पुराना साहित्य जिम भाषा में मिलता है उसे संस्कृत कहते हैं, परंतु जैसा कि उसका नाम ही दिखाता है, वह आर्यों को मूल भाषा नहीं हैं। वह मजी, छंटी, सुधरी भाषा है । कितने हजार वर्ष के उपयोग से उसका यह रूप बना, किस 'कृत' से वह 'सस्कृत' हुई, यह जानने का कोई साधन नही बच रहा है । यह मानो गगा की नहर है, नरोने के वांघ मे उममे सारा जल खैच लिया गया है, उसके किनारे सम हैं, किनारों पर हरियाली और वृक्ष हैं, प्रवाह नियमित है। किन टेढे-मेढे किनारो वाली, छोटी वडी, पथरीली, रेतीली नदियों का पानी मोडकर यह अच्छोद नहर बनाई गई और उस समय के सनातन भाषा प्रेमियो ने पुरानी नदियो का प्रवाह 'अविच्छिन्न' रखने के लिये कैसा कुछ आदोलन मचाया या नही मचाया, यह हम जान नहीं सकते। सदा इस सस्कृत नहर को देखते देखते हम असस्कृत या स्वाभाविका, प्राकृतिक नदियो को भूल गए । और फिर जव नहर का पानी पागे स्वच्छद होकर समतल, और सूत से नपे हुए किनारो को छोडकर जल स्वभाव से काही टेढा कही सीधा, कही गॅदला, कही निखरा, कही पथरीली, कही रेतीली भूमि पर और कही पूराने सूखे मागों पर प्राकृतिक रीति से बहने लगा तब हम यह कहने लगे कि नहर से नदी बनी है, नहर प्रकृति है और नदी विकृति-- [ हेमचद ने अपने प्राकृत व्याकरण का प्रारभ ही यो किया है कि मन्नत प्रकृति है, उससे आया इसलिये प्राकृत कहलाया ] यह नहीं कि नदी प्रव सुधारको के पजे से छूटकर फिर सनातन मार्ग पर पाई है । इस रूपक को बहुत बढा सकते है । सभव है कि हमे इसका फिर भी काम पडे । वेद या छदस् की भाषा का जितना मात्म्य पुरानी प्राकृत ने है उतना सस्कृत से नहीं। सस्कृत मे छाना हुआ पानी ही लिया गरा। प्राकृतिक प्रवाह का मार्गक्रम यह है- ३-प्राश्त-५-सपलंग १-मूल भाषा २-छदस् की भाषा,<, '४-सस्कृत