पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/६१

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पुरानी हिदी जल लाल भूमिपर बहता है तो लाल हो जाता है, काली पर काला। [कयाएं पुरानी आर्य कथाएँ हैं, जैन, बौद्ध, वैदिक सबकी समान सपत्ति हैं। पुराणो मे ही कथाओ मे भेद पाया जाता है। एक ही निर्दिष्ट राजा की पुनप्राप्ति एक जगह एकादशी व्रत से कही गई है, दूसरी जगह किसी और व्रत से। हिमवत् की बेटी उमा ने शिव का सा पति, कोई कहता है कि घोर योग और तपस्या से पाया, कोई कहता है कि पिना से असहयोग करके, अर्थात् हरितालिका व्रत से, पाया। यदि बौद्धो के दसरथ जातक मे सीता राम की वहन है तो यजुर्वेद मे अविका रुद्र- स्वसा है' । यो ही इन कथाप्रो के पाठातरो को समझना चाहिए । हेमचद्र बडे दूरदर्शी और सर्वमित्र थे। जिनमंडन रचित कुमारपालप्रवध (स० १४९२) से दो कथाएँ उद्धृत कर दिखाया जाता है कि इन कथानो पर उनका क्या मत था । सिद्धराज जयसिंह से मिलते ही उन्होने 'पुराणोक्त' सर्वदर्शना विसवादिनी यह कथा कही- 1-~-शख नामक सेठ की स्त्री ने सौतिन के दुख से किसी वगाली जादूगर की औपध खिलाकर पति को बैल बना दिया। पीछे बहुत रोई पीटी और बैल ( पति) को जगल मे चराने ले जाती। शिव पार्वती घूमते हुए पा गए, पार्वती ने कथा सुनी और उसके अत्याग्रह से शिव ने बताया कि इसी वृक्ष की छाया मे पशुओ को पुरुष बनाने की प्रोपधि है । स्त्री ने यह सुन- १ कुछ बंगला रामायणो तथा काश्मीर की कथाओ में अद्भुत रामायण के अाधार पर यह कथा है कि सोता रावण की स्त्री मंदोदरी की पुत्री थी। नारद ने लक्ष्मी को शाप दिया था कि तू गक्षसी के गर्भ से जन्म ले । इधर गृत्समद ऋषि की स्त्री ने कामना की कि मेरे गर्भ मे लक्ष्मी कन्या रूप से उत्पन्न हो। ऋषि ने एक मंत्रित कुशा इसीलिये घडे मे रक्खी। रावण ने जब ऋषियो को सताकर उनका रुधिर कर की तरह लिया तो इसी घडे में भरा और मदोदरी को यह कह कर सुरक्षित रखने को दिया कि यह विष से भयकर है । रावण के देवकन्यानो आदि से विलास करने से जलकर मदोदरी ने प्रात्मधात करना चाहा और उसी 'विष से भी भयकर घट के रुधिर का पान किया। उसके गर्भ रह गया और रावण की अनुपस्थिति मे ऐसा होने की लज्जा से बचने के लिये वह सरस्वती तौर पर गर्भ को गिरा आई । वही पर हल चलाते हुए जनक ने वह गर्भ कन्यारूप में पाया और उसका नाम सीता रक्खा। प्रियर्सन ज० रा. ए. सा०, जुलाई १९२१, पृ० ४२२-४] ।