पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुरानी हिंदी ५७ - कर सारी छाया रेखाकित करके उसके नीचे का मब घामपात बैन को खिलाया, वह पुरुप हो गया। यो ही सब धर्मों की मेवा करने में नर धर्म मिल जाता है, दया सत्य आदि को मानकर सभी धर्मों का पालन करना चाहिए, घाम ने • जडी भी मिल जाती है । दूसरी बात यह है कि ब्राह्मणो ने हेमच पर यह । आक्षेप किया कि पाडव प्रादि हमार थे जैन झूठे ही कहते है कि वे मुक्ति के लिये हिमालय नही गए इत्यादि । हेमचन्द्र ने कहा 'हमारे पूर्वमा यो रे वर्णना- नुसार उनकी हिमालय मे मुक्ति नहीं हु', किंतु यह पता नहीं है कि हमारे शास्त्रो मे जो पाडव वरिणत है वे दे ही है जिनका व्यास ने वर्णन गिया है, या दूसरे । क्योकि महाभारत मे भीष्म ने पाइयों ने कहा था कि मेग नम्धार व्ही करना जहाँ कोई पहले न जलाया गया हो। ३ उममा देह पहाड़ की चोटी पर ने गए और उस स्थान को अछूता समझकर दाह करनेवाले ही थे कि आकाशवाणी हुई-- 'यहाँ सो भीष्म जल चुके है, तीन गो पारव, हजार दुर्योधन और कर्णो को तो गिनती ही नहीं' । इन भान्त की उक्ति मे ही हम कहते हैं कि कोई पाडव जैन भी रहे होंगे। बस ऐसे मौको पर हमारे यहाँ जो गडवड मिटानेवाला महास्त्र है, चाहे ऐतिहासिक दृष्टि में उसमें भोदापन और जग हो, वही यहाँ काम देगा कि- कल्प' भेदेन व्याख्येयम् । सोमप्रभ को रचना मुख्यत प्राकृत मे है, प्रत में एक दो कमाएं विल्कुल सस्कृत मे और एक प्राध अधिकतर अपभ्रश में है। यो प्रसग प्रमग पर बीच बीच मे सस्कृत श्लोक और पुरानी हिंदी के दोहे मी या गए हैं, किंतु अथ प्राकृत का ही है। प्राकृत बहुन सरम, स्फीत और मूल है. कही कही श्लेष बहुत अच्छी तरह लाए गए है । एक जगह प्राकृत लियते लिखते कवि गद्य मे हो उस समय की हिंदी पर उतर गरा है, पर झटपट संभल गया है- १. पत्र भीष्मशत दग्ध पाण्डवाना शतवयम् । दुर्योधन महलं नु वर्णमाला न विद्यते । २. अर्थात् भिन्न भिन्न फल्पो मे भिन्न भिन्न घटनाएँ पर मानार व्याच्या करो। कल्प का मर्म फल्पना भी होता है।