पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/६३

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५८ पुरानी हिंदी 'भो आयनह मह वयणु, तणु, लक्खरिणहि मुरणामि । इहु बालक एयह घरह कमिण भविस्सइ सामी । इसे ऐतिहासिक, विकास को न माननेवाले भले ही महाराष्ट्री प्राकृत कहें किंतु है यह देशभापा । कुमारपालप्रतिवोध में पुरानी हिंदी कविता दो तरह की है,-एक तो वह जो स्वयं सोमप्रभ की और कवि सिद्धिपाल की रचित है। वह डिंगल कविता से बहुत मिलती है और हमने उसके अवतरण अधिक नहीं दिए हैं । जब पुस्तक छप गई है तब उनका फिर प्रकाशित करना अनावश्यक है। इस लेख के दूसरे भाग में इन दोनो की अपनी रचनाओ की कविताओं की संख्या और पृष्ठाक दे दिए हैं और कुछ चुने हुए नमूने । प्रथम भाग मे वह पुरानी कविता सगृहीत है जो सोमप्रभ से पुरानी है और उसने स्थान स्थान पर उद्धृत की है । प्राकृत रचना मे कही कही ऐसा एक आध दोहा पा गया है। सोमप्रभ ने ग्रामोफोन की तरह हेमचंद्र की उक्ति नही लिखी है । उसने किसी विशेष धर्म के उपदेश मे कोई पुरानो विशेष कथा जो लोक में प्रचलित थी हेमचंद्र के मुंह से अपने शब्दो में कहलवा दी है। कथाएँ उसने • गढी नहीं हैं, प्रचलित तथा पुरानी ली. है जो उस समय देशभापा, , गद्य, पद्य - मे प्रचलित होगी। फिर क्या कारण है कि सारी कथा प्राकृत मे कहकर वह कोई बीजश्लोक, या कथा का संग्रहश्लोक, या नल ने जो दमयंती से कहा, या नल को खोजनेवाले ब्राह्मण का 'क्व न त्वं कितव छित्वा' के ढंग का दोहा, प्राकृत मे ही न कहकर अपभ्रंश मे कह रहा है ? जहाँ उसने इतिहास या कुमारपाल का धर्मपालन स्वय लिखा है वहाँ तो वहं, ग्रथ की समाप्ति के पास वारह भावनामो के वर्णन को छोडकर, अपभ्रश काम मे नही लाता । वह कथाओ को रोचक बनाने के लिये, उन्हें सामयिक और स्थानिक रग देने के लिये, अज्ञात और अप्रसिद्ध कवियो के दोहे बीच बीच में रख रहा है जो सर्वसाधारण ने प्रचलित थे। इन दोहो मे कई हेमचन्द्र के व्याकरण के उदाहरणो मे है, कई प्रवधचितामरिण में १. भो सुनो मेरे वचन को, तनुलक्षणो से जानता हूँ। यह बालक इस घर का क्रम से होगा स्वामी । प्रायन्नह मह क्यणु = अकनो मो वैन, गुसाईं जी के 'अवनिप अनि राम पगु घारे मे अकन् = प्राकम्। सुनना ।