पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/६४

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पुरानी हिंदी ५६ है, कई जिनमडन के कुमारपालप्रवध तक चले पाए हैं । जो दोहे मं० ११९६ ( सिद्धराज जयसिंह की मृत्यू हैमव्याकरण की रचना का मभावित अतिम समय) मे मिलते हैं, जो म० १२५१ (नोमप्रभ को रचनाकान ) तक मिलते हैं, जो स० १३६१ (प्रवचिंतामरिण ) में उपलब्ध होते हैं, जो स० १४९२ ( जिनमडन का कुमारपाल प्रवध ) तक कथानो में परपरा से चले आते हैं, यो जिनकी आयु इधर तीन सौ वर्ष है. क्या वे उपर मी सवा सौ वर्ष के न होंगे? इनमे कथाओं के बीजश्लोक है, प्रचलित उक्तियां हैं, गायिकाओ के चोचले हैं, वियोगियो और वियोगिनो फे विनाप है, कहावत है, ऋतुवर्णन है, समस्यापूर्तियां हैं, जिन्हें कोई किसी को राजममा मे रखना है कोई किसी की मे--अर्थात वह सामग्री है जो अलिपिन दतकथाओं में सुरक्षित रहती है और सदा और सर्वत्र कथा कहनेवाले के दिल को प्यारी है। प्राज भी राजपुताने मे कहानी कहनेवाला जहाँ गु दरी का वर्णन पाया है वही बीच मे यह दोहा जोड देता है-- कद ते नाग विमासिया नैरण दिया मग सन्न । गोरी सरवर कद गई हसाँ सीपड हल्ल' ।। जहाँ मित्रता का वर्णन आता है वहां यह दोहा घुमेडता है-- लग्गा तो मना तो मन भो मन लम्ग । दूध विलग्गा पारिणयाँ ( जिमि ) पारिणय दूध विलग ।। जहां किसी वीर नारी का प्रसग प्राया तो चट ये दोहे पा मो मन . जायगे-- ढोल सुरणता मगलो मूछा भोह चढन । चंवरी ही पहिचारिणयो कत्ररी मरणो कत ।। ढोल बजता हे सखी पति पायो मोहि लैण। वागाँ ढोला मैं चली पति को बदलो लंगा।। ? १ कब तैने नागो को विश्वासयक्त किया (कि वे नरे केको के में पा गए) मृगो ने तुझे नयन कब सौप दिए ? गोरी' मो से गान सीखने तू सरोवर कब गई थी। २. मेरा मन तेरे मन से लगा और तेरा मन मेरे मन में लगा, जैसे दूध पानी से लगा और पानी दूध से ।