पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/६५

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६० पुरानी हिंदी मैं परणती परक्खियो तोरण री तरिणयाह । मो चूडरलो उतरसी जद उतरसी परिणयाह' । अवश्य ही ये दोहे कहानी कहनेवाले के नहीं है, प्राचीन हैं। वस्तुत इन गायानो का कुमारपालप्रतिबोध मे वही पद है जो विशेष राजानो के यज्ञ और दान की प्रशसा को अभियज्ञ गाथानो का ब्राह्मणो मे । ऐतरेय और शतपथ ब्राह्मण मे ऐंद्रमहाभिपक और अश्वमेध आदि के प्रमग पर ऐसी नाराशसी गाथाएँ दी गई है जो अवश्य ही ब्राह्मणो को रचना के समय लोक में प्रत्रलित थी, और जिन्हें "तदेपा अभियज्ञगाथा गोयते" कहकर ब्राह्मणो मे इसी तरह उद्धृत किया है। वे या वैसी ही कर्क गाथाएँ महाभारत आदि पुराणो मे उद्धृत की है । १. विवाह के समय मे मगल के ढोल सुनते ही नायक को मूंछे भौह तक चढ जाती थी तो नायिका ने चँवरी (विवाह मडप) मे ही पति का (युद्ध में मरना पहचान लिया। हे सखि । पति मुझे लेने को ढोल बजाकर आया था, मैं भी युद्ध के बाग ( वस्त्र ) पहनकर और ढोल बजाकर पति का बदला लेने चली हूँ। मैंने तोरण के पास विवाह के समय पहचान लिया (नायक की वीरता को देखकर) कि जब मेरा चूडा उतरेगा ( मैं विधवा होऊँगी) तब बहुतो का उतरेगा (वह बहुतो को मारकर मरेगा) । २. ऐसी कुछ ऐतिहासिक गाथाओ का अनुवाद मैंने मर्यादा के राज्या- भिषेक अक मे कर दिया था। (मर्यादा, दिसबर १९११-जनवरी १९१२) ऐसी गाथाम्रो का एक नमूना यह है। मरुत परिवेण्टारो मरुतस्यावसन् - गृहे । प्राविक्षितस्याग्नि क्षता विश्वेदेवा. सभासद ।', -शतपथ १३१५१४॥६॥ ३ मे 'दुष्यत से बातचीत- भस्त्रा पितु पुत्रो यस्माजात. स एव स.। पुन्न दौष्यति सत्यमाह शकुंतला ॥ रेतोधा पुत्र उन्नयति नृदेव महत. क्षयात् । चास्य गर्भस्य सत्यमाह , शकुतला ॥ जैसे महाभारत शकुतला की माता भरस्य त्व धाता ,