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पुरानी हिंदी

के कद

अ्रपभंश के विशेष सिथम लिखकर लिखा शौरसेनीवतू (८४६८६) भर उपसहार में सभी श्राकृतों को लक्ष्य करके लिखा शेप सस्फतवत्निद्धम ( पाष्शीड४८ ) तो दया उसका प्र्थ यह किया जाय कि यह उन भाषाओं का कुर्सनामा हुआ ? क्‍या पहली पहली भाषा जनक हुई और अगदी छगती उससे आगत या उससे उद्भूत ? नहीं, साधारण नियम 'प्रकृति” मे समल्‍क्षाए गए, विशेष नियम “विकृति” मे। यही प्रकृति और विक्ृततिया प्रझूत अर्थ है ।

मार्कडेय के व्याकरण मे प्राकृत के इतने भेद दिए हैं---

१ भाषा--महाराष्ट्री, शोरसेनी, प्राच्या, आवती, मागधी, घर्ध मायधी 1

२ विभापा--शाकारी, चाडाली, शावरो, अभीरी, टाक्कों, श्रोट्रो,

द्राविडी ।

हे अपभ्रश ।

४ पैशाची 1

यह्‌ विभाग परिसखझ्णा मात्र है, तर्कानुसार विभाग नहीं है । कुछ नाथ देशो से बने झौर कुछ जातियो से बने हैं। प्राच्या पूर्वी बोली है, जो


और श्रवती की प्राकृतो से बनी कही जाती है। अवत्ी छी भाषा में


कहते है कि 'र” का लोप नहीं होता ओर लोकोक्ति और देशभाषा प्रयोग अधिक होते हैं । तो वह झपश्रश्त की बहनेली हुई । उसे महा और शौरसेनी का सकर भी कहा है। भ्रवंती (मालवा ) महाराग्द्र शूरसेन देशो के बीच मे है ही । ब्र््ध मागधी तो यहाँ गिन ली, पर चर पैथाची ( छोटी पैशाची ) नहीं गिमी । शकार की कोई श्रनग भाषा जैसे फिसी नाटक का कोई पात्न 'है सो ने' या 'जो है घो' अ्रधिवा बोलता रो तो उसकी बोली मे वहो तकियाब्यलाम अधिक प्रावेया, यैसी गदटी बोली शकारी है। चाडाल, शवर जातियाँ है । आभीर जाति भी टबक पंजाब का वक्षिसपश्चिमी भाग है जिसकी चर्चा पते







द्राविड्ली द्रविड की अनाये भापा तामिल नहीं, कितु एक गयी है। राजशेखर ने कर्पूर्मजूरी में कविता में महाराष्ट्र और ये काम में ली है । नाटकों से पात्मानुगार भाषाविशेष शा अराय पु हि. ५ (११००-७५)