पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/७०

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पहला भाग प्राचीन मा ।

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(१) मारिण पगड जइ न तणु तो देमा चज्ज ! दुज्जनकरपल्लविहिं दमिज्जतु भमिज्ज ।। मान, प्रनष्ट हो, यदि, न, शरीर, बह, कुदेश, तजिए, मन दुर्जन-कार- पल्लवो से, दिखाए जाते हुए, घमिए । मान प्रनष्ट हो ( तो गनेर "छोडना चाहिए। यदि शरीर न छोडा जाय) तो देण को (तो अमर) तज दीजिए । पूर्वार्द्ध का यह अर्थ और भी प्रक्छा है। जइ न तण-- देह न जावे तो भी मान जावे ता । देसडा-देखो प्रबध--(१) मे 'स देसडो' की टिप्पणी। वइज्ज, भमिज्ज-तजीजे, भ्रभीज। दम-दिवाने के अर्थ का प्राकृत धातु [ दृश से ] । पजावी दस्स, देखो (४६) । यह दोदा हेमचन्द्र में भी है । (२) एक मनुष्य यज्ञ के लिये बकरे को ले जा रहा पा पोर वकाग मिमियाता था । एक साधु ने उसे यह दोहा कहा तो बारा पहना। साधु ने समझाया कि यह इसी पुरुष का वाप रुद्रशर्मा है, ने यह तालाव खुदवाया, पाल पर पेड लगाए प्रतिवर्ष यहाँ बफरे मारने या या चलाया । वही रुद्रशर्मा पांच बार बकरे की योनि में जन्म लेकर अपने पुत्र मे मारा जा चुका है। यह छठा भव है। वकरा अपनी भापा में यह सा है कि बेटा, मत मार, मैं तेग वाप हूँ. यदि विश्वान न हो तो यह सहिदानी बताता हूँ कि घर के अंदर तुझसे छिपाकर निधान गार राता है, दिखा दूं। मुनि के कहने पर बकरे ने पर मे निधान निचा दिया और फिर बकरे और उसके मनुष्य पुन्न को स्वर्ग मिल गया। खड्ड खडानिय त छगल सइ भारोविय रक्स। पर जि पत्तिय जन्न सइ कि दुम्बुपहि मुरक्य । it