पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/७२

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पुरानी हिंदी ६९ नरवइ प्राण जु लपिहइ वमि करिहइ जु करिदु । हरिहइ कुमरि जु कणगवइ होमः इह मु नन्दुि ।। नरपति (की ) यान जो उलधिगा बम में करेगा जो गा गो, हरेगा जो कुमारी कनकवती (को) होगा यहां यह नरेंद्र । प्रमसिंह कुमार ने तीनो वातें पूरी की हैं । यहाँ 'प्राण' को मस्कृत 'माना' से मिलाते है किंतु इसका अर्थ शपय या दुहाई है जैने रानपाने में 'दरबार को ग्रान' (मोहि राम रावरि पान [3 राय नी पान ] मार सपथ ---(तुलसी रामायण मे निपाद का वाक्य) । प्रागे कपा में मष्ट होता है कि "आन' का अर्थ यहाँ कोई प्राना नहीं है । प्राधी गन को अभयसिंह चला जा रहा था कि नगर रक्षक ने टोका और न टह ने पर राजा की 'पान' दी। 'प्रपने बाप को राजा की प्रान 'यो कहकर अभयसिंह चल दिया' । इमो कथा में आगे चलकर एक अद्भुत महागिरा है । राजकुमारी कनकवती पर हाथी ने मोहरा कर दिया है। उनका परिजन पुकारता है-है कोई 'चउहसीजानो' जो हमारी स्वामिनी को इस कृतात के से हाथों से बचावे " यहाँ चउड़ सीजायो = चोदम का जाया- चतुर्दशी के दिन जनमा हुमा, बडे भाग्यवान् या पराक्रमी को अयं मे पाया है, जैसे जिसकी छाती पर बाल हो यह यह काम करे, जिमने मां का दूध 'पिया है, कोई चोदनी (शुक्लपक्ष को) चौदस का जाया हो"इत्यादि । वसत वर्णन-- प्रह कोइल-कुल-रव-मुहुल भुवणि वसत पय । भट्ट व मयण-महा-निवह पयडिन-विजय-मरढ़ ।। अथ कोयल-कुल-रव-मुखर वन (मे) वसत पठा। भट इव मदन महा नृप का प्रकटित-विजय-पुरुषार्थ ।। मरट्ठ - वीरता, मराठापन ? (८ Di सूर पलोइवि कत - करु उत्तर-दिति-प्रामतु । नीसासु व दाहिण-दिसय मलय-समीर पवत्तु ।। १ नवरारखेण दिन्ना रन्नो पारणा । देसु निमपिउगो रन्नो प्राराज भणतो अभयसीहो बच्चइ । (पृष्ठ ३%)