पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुरानी हिंदी .१ ( १२) कुसल नामक एक विप्र (महाभारत के नलोपाध्यान का पद) पहन को (क्षुद्रक, महाभारत का बाहुक-मल, विकृत स्प मे) देखबर यह मेला (दुहय) गाता है- निठुर निक्किनु काउरिसु एकुजि नलु न हु भति । मुक्कि महासइ जेण विरिण निसि सुत्ती दमयति ॥ निष्ठुर, निष्कृप (कृपारहित) । कापुरप , एक, जो, नल (है) न्हीही, भ्राति (इस बात मे) छोडी, महामती, जिनने, वन में, निजा, सूती दमयती। मुक्कि-मुक्ता, महासइ-देखो ना० प्र० पत्रिका भाग १ पृष्ठ १०४ । (१३) परदारगमन के विपय मे उज्जयिनी के राजा प्रद्योत की वथा नियों है, उसी में प्रसग से उदयन वत्सराज, वासवदत्ता, योगघरायण प्रादि की कथाएँ भी आ गई है जो बौद्ध जातको मे, वृहत्केया (फयामरिलागर) और भास के नाटक में है। इस कथा मे भास के नाटक प्रनिनायोगधगम को कथा से कुछ भेद है किंतु दो श्लोक उसी नाटक के उद्धृन किए हैं। अस्तु । राजगृह के राजा श्रेरिण क के पुत्र अभय को प्रयोत ने छन बांधकर अपने यहाँ रख छोडा धा । उसने बाई मार्के के काम किए, प्रधान ने उससे वर मांगने के लिये कहा तो उसने यह ऊटपटान वर मांगा जिनका अभिप्राय यह था कि मुझे अपने यहां से विदा कर दो-- नलगिरि हथिहिमि ठिनइ मिवदेविहि उच्छगि । अग्गिभीर रह दारइहि अग्गि देहि मह अगि ॥ प्रद्योत के यहाँ नलागिरि प्रसिद्ध हाथी था, शिवा देवी पी र अग्निभीरु रथ था जो प्राग में नहीं जलता था । अभय नहताशिनममिनि हाथी मे (पर) बैठे हुए. शिवदेवी को गोद मे, अग्निभीर रस पीना से, प्राग, दे, मेरे, अग मे । उच्छग-तुलसीदामजी वा उग, समग । हत्यिहिमि-दोहरी विभक्ति । (१४ ) जाते समय अभय वदता लेने की यह प्रतिज्ञा कर गया और पीपारा परदार-गमन-रसिक प्रद्योत को दो स्त्रियो से बिलमा कर बांध ले गया।