पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुगनी हिंदी ४३ (१८) मई जारिगयउ पिय विहियह छ बि घर होर बियाति । नवरि मयकु वि तह तवह जह दियर ग्याति ॥ मैं, जान्यो, पिय-विरहित का, (- को), कोई, भो, नहारा, होरे, गा मे, नहीं पर (= यह पता नहीं कि यह नो दर न्हा उनटा) मयंक, भी, वैमे, तप, जैसे, दिनकर (= मूर्य), लयकाल मे। धर-धन्नेवाली यान, प्राधार, सहारा । वियालि - विकाल में, यि = द्वि, इमरी बेना अर्थात् गन । मयंक = मृगाक, चन्द्र । खयकाल-प्रलर । नवरि-म देगी काठी माय प्राकृत की सस्कृन छाया बनानेवाले नही ला सकने । अपर प्रर्य दिया : । यह दोहा हेमचन्द्र के व्याकरण में भी है। (१६) अज्जु विहाणा अज्जु दिरणु अजु मुबाउ पचत्तु । अज्जु गलत्यिउ सयलु दुहु ज तुहु मह घरि पत्तु ।। आज, विहान (हुआ), प्राज, दिन, आज, सुवाय. प्रयन (हुआ), आज, गलहत्या दिया (निकाल दिया}, सकल दुस, नो, तू मेरे, पर में प्राप्त (हा) । विहारणउ-नामधातु विहान्यो, हिंदी बिहान, मल निभान, विभान । गलत्यिउ-40 गलहस्तित, गले में हाय देकर निकाल दिग (अर्द्धचंद्र दिया, गलहस्तेन माधव ) । (२०) पडिवज्जिवि दय देव गुरु देवि नुपत्तिहि दाए । विरइवि दीपजणुद्धरण ‘फरि नफन अप्पारा ।। चौथे चरण की समस्यापूर्ति । दया, देव और गर को प्राप्त कर (स्वीकार करके), देकर, सुपात्र को दान, रच नारयेो. दीनस्नोमग, गर, सफल, अपने को । पडिवज्जिवि-प्रतिपद्य, अगीकार करके। रिति-पिर पर, विरच कर । अप्पाण-यात्मान, तुलसीदास जी का प्रमान' । परिजिदिपि, विरइवि पूर्वकालिक क्रियाएँ । (२१) पुत्तु जु रजइ जरायमरण पी घारार भिच्चु पसन्नु कर पहु 'रह भल्लिम पजद ।