पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/७७

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७४ पुरानी हिंदी समस्यापूर्ति----पूत, जी, रजावे, जनक ( का ) मन, स्त्री, पाराध, कता (को), भृत्य, प्रसन्न, करै, प्रभू (को), ये (या यहाँ) भलेपन को, पाते हैं। रजइ, रजयति, रजै, प्रसन्न करे। अाराह-प्राराधना करे। इह-ये अथवा यहाँ । भल्लिम-भलाई (संस्कृत का इमनिच्) । पज्जंतु-पाईजते है, पाते है, या इह भल्लिमपज्जतु = 'यह भलाई की पर्यंत (सीमा) हैं। यह भी अर्थ हो सकता है। (२२) मरगय वन्नह पियह उरि पिय चंपयपह देह । ( समस्या) कसबट्टइ दिन्निय सहइ नाइ सुवन्नह रेह ।। (पूर्ति ) मरकत वर्ण के (साँवरे), पिया के उर पर, प्रिया, चपक (की सी) प्रभा (वाले) देह को, कसोटी पर, दीनी, सोहती है, नाई, सुवर्ण को, रेखा । हेमचंद्र के व्याकरण मे इससे बहुत मिलती हुई एक दूसरी कविता है उसका व्याख्यान आगे देखो । क्या यह कहने की आवश्यकता है कि यह किस अवस्था का वर्णन है ? सहइ, देखो ऊपर (१०) (४१) । ( २३ ) चूडउ चुन्नी होइसइ मुद्धि कवोलि निहित्तु । (समस्या) सासानलिण झलक्कियउ वाहसलिलस सित्तु ।। (पत्ति ) चूडा, चूर्ण (चूरा चूरा), हो जायगा, हे मुग्धे ! कपोल पर, रक्खा हुआ, श्वास (को) अनल (अग्नि) से, झलकाया, वाष्प सलिल से खीचा (हुमा) । पहले तो जलते साँम चूडे को तपा देंगे फिर उस पर आँसू पड़ेगे, क्या वह चुरा चूरा न हो जायगा ? मुद्धि कवोनि--को समास भी मान सकते हैं, मुग्धा के कपोल पर। चूडउ--चूडो, सभवत दाँत का। चुन्नी होइसइ---अभूततद्भाव का इ पहचान लो। मुद्धि--देखो प्रवध०' 'मुधि' (दू०८)। झलक्कियउ---झल = ज्वाला, देखो प्रवध (दू०६) 'झाली' ! यह हेमचद्र में भी है। (२४) हउ तुह तु निच्छहरण मग्गि मरिणच्छिउ, अज्जु । तो गोवालिण वज्जरिउ पहु मह वियरहि रज्जु ॥ मे, तेरे (या तुझपर), तूठा हूँ, निश्चय से, मांग, मन इच्छित, आज ( देवता के ऐसा कहने पर ) तब, गोपाल ने, कहा, प्रभु ! मुझे, दे, राज ।