पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/७८

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पुरानी हिदी ८५ । . वज्जरिउ-देसी, उचरा, कहा । वियरहि-वितर [ + हि] म० समय है यह सोमप्रभ की ही रचना हो, किंतु अधिक समय है कि यह कहानी ग सग्रहश्लोक हो। ( २५) एक कोहल नामक कवाडी या जो काठ को पावड कधे पर लिए निग फिरता था। उसकी सिंहला नामक स्त्री थी। उसने पति में पता कि देवाधिदेव युगादिदेव की पूजा करो जिमसे जन्मातर में दारिद्रय दुगन पावें। पति ने कहा तू धर्म-गली (पागल) हुई है, पर मेवा में भया कर सकता हूँ? तव स्त्री ने नदी जल और फूल पूजा की। उसी दिन यह विसूचिका से मर गई और जन्मातर मे राजकन्या और गजपलो ह- अपने नए पति के साथ किसी उसी दिन मदिर में पाई तो उनी पूर्व पनि अन्ति कवाडिये को वहाँ देखकर मूछित हो गई। उसी समय जातिम्मन होगा उसने यह दोहा पढा । कवाडी ने स्वीकार करके जन्मानर पुष्टि की पानी . अडविहि पत्ती नइहि जल तो वि न हा हाथ । अच्चो तह कब्बाडियह अज्ज विसज्जिय वन्ध । अटवी (जगल) की, पत्ती, नदी का, जल, ( मुन्नभ था ) ना, भी, ( तैने ) न हिलाए, हाय, हाय । उसके, यवाहि के, प्राण, विन्ति । वस्न (तन पर कपडा भी नही, और मैं रानी हो गई। बूरा-चत किए । पन्चो-पाश्चर्य और खेद मे। (२६) जे परदार-परम्महा ते वच्चहि नरमा । जे परिरहिं पररमरिण ताह परिजर लीह ।। जो, परदारा ( से ) पराउमुख (है,), , कहे जाने हैं. नगर, नो, आलिंगन करते है, पररमणी ( को), उनवी, पूंछ गती, रेनानी को पक्ति से)1 वुच्चहि-स० उच्यते । फुसिज्जर-पोछ ली जाती है, निert जाती है, सस्कृत में पोछने के लिए उत् + पुन धातु समीरी गपिनो में प्रयोग किया है। ली रेह, लीक ।