पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/७९

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पुरानी हिंदी (२७) एक बहू पशुरक्षियों को भापा जानती थी। आधी रात को शृगाल को यह कहता सुनकर कि नदी का मुर्दा मुझे दे दे और उसके गहने ले ले, नदी पर वैसा करने गई । लोटती वार श्वसुर ने देख लिया। जाना कि -यह अ-सती है। पीहर पहुँचाने ले चला। मार्ग मे करीर के पेड़ के पास से कोया कहने लगा कि इस पेड़ के नीचे दस लाख की निधि है, 'निकाल ले और मुझे दही सतू खिला। अपनी विद्या से दुख पाई हुई कहती है- एक्के दुन्नय जे कमा तेहि नीहरिय घरस्स । वीजा दुन्नय जइ करतो न मिलउ पियरस्स। एक, दुर्नय, जो, किया, उमसे निसरी (निकली) घर, से, दूसरा, दुर्नय यदि, करूँ, तो, न, मिलू ( कभी भी), पियारे से। घरस्स, पियरस्स-- सस्कृत पष्टी 'स्स' से हिंदी पचमी और तृतीया दोनो का काम सरा है। पियरस्स, प्रिय से नो हिंदी रिय या पिया बना है-और प्रियकर, पियर, से पियारा प्यारा। (२८) रुक्मिणी हरण के समय कण्ह ( कान्ह, कृष्ण ) रुक्मिणी से कहता है- अम्हे थोडा रिउ बहुय इउ कायर चितति। मुद्धि निहालहि गयणयल' कइ उज्जोउ करति ॥ हेमचन्द्र में भी है । हम, थोडे ( है ), रिपु. बहुत ( है ), यो, कायर चीतते हैं, भोली ।, देख, गगन तल मे, के (कितने), उदोत (प्रकाश) करते हैं ? बहुत से तारे या एक चन्द्र ? अम्हे-राजस्थानी म्है । मुद्धि- मुग्धे ? ( देखो २३ ) । निहालहि--प्राज्ञा, उपनिषदो का निमालयति । उज्जोउ-उद्योत। सो जि वियक्खणु अक्खियइ छज्जइ सोज्जि इल्लु । उप्पह पट्टियो पहि ठवइ चित्तु जु नेह गहिल्लु । वह, जो, विचक्षण, कहा जाता है, छाजता है ( शोभित होता है ) यही जी, छल, उत्पथ प्रस्थित ( कुमार्ग पर चले हुए ) को, पथ पर टिकाता