पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/८०

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पुरानी हिंदी । है, चित्त को, जो नेह-गहले ( प्रेम से मतवाले) को । प्राविनया-~-प्रामा जाय, पाखना- पा+ख्या, पजावी पाखना% पहना । छज्जः-छा। तर सोज्जि-सोउ+ जि, वही, जी ( पादपूरण) । छल्नु---मस्कृत हेर= 3 विदग्ध, चतुर, प्राक्त कविता में छल्ल का अथ चतुर है, पजाबी छन अच्छा । इस छइल तथा बनावट के प्रेमी छैला (छविन, हवीला) या भेद = तुलसीदास ने दिखाया है, 'छरे छचोले छल सव' । टवड-याप, यापयति - (स.) । गहिल्लु (स.) अहिल, आग्रही, इममें गहला या पेला = हठी या पागल। (३०) रिद्धि विहूणह माण सह न वृणइ वुवि सउरिणहि मुच्चहि फलरहिट तरुवर इत्यु पमाण। रिद्धिविहीन (का), मनुष्य (का), न, करता है, कोई भी, समान, र पक्षियो से छोड़ा जाता है, फल रहित, तरुवर, यहां प्रमाण (यह है)। -tim' रिद्धि - ऋद्धि (स.)। विहूरण-~विहीन, डिगल कविता में आता है, निष्ठा के रूप मे ई और उ की वदल के लिये मिलाओ जीणं - जम् = जना । सर रिण = शनि ( स०) । इत्थ-प्रावत एत्य, स० अन्न, पजावी .त्यु। ( ३१) जइवि हु सूर सुरवु विग्रकरण । तहपि न सेवइ लक्छि पडक्या ।। पुरिस - गुणागुरए • मुगरण - परम्मूह । महिलह बुद्धि पयपहि ज वह ।। यद्यपि, हो, शूर, सुरप, विचक्षरण, तथापि, नही तो है, सभी उम म्यानचा मनुष्य को) प्रति । क्षण ( क्योकि ) पुरपी (के । मृगा गुण , ) विचार (से) पराडमुख, महिलामो को बुद्धि (होती है), पाने में पयपहि--0 प्र+जप! वा ज्यो ( यथा )। । बुध ॥ मुगरण -विचारना। 'जेरण कुलक्ष लधिया अवस्म पर लो। त गरु-रिद्धि-निबधण वि न पुणर मि॥