पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/८५

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52 पुरानी हिंदी करता मदन (रूपी) ज्वलन (अग्नि) की ज्वालावलियां ॥ सहहि-देखो (१०) (२२)। (४) पृ० १७८, ग्रीष्मवर्णन, चार छद, नमूना-- (४२) जहि दुठ नरिंदु व सयल भुवणु, परिपीडइ तिच्वक्ररेहिं तवणु । जहिं दूहव महिलय जण समग्ग सतावइ सूय सरोर लग्गु । जहाँ, दुष्ट, नरेंद्र, इव, सकल, भुवन को, परिपीडित है तीन करो से, तपन ( - सूर्य ), जहाँ, दुर्भगा (वियोगिनी ) महिला, जन, समन (को), सतावं, सूर्य ( ? ) शरीर मे लगा। कर- किरण, राज देय। (५) पृष्ठ ४२३ से ४३७, जीवमन करण सलाप, छद १-२, ४-२७, २६-३०, ४७,५१-५२, ५४-५६,६१, ६४-६५, ६७-१०४ ( वाकी प्राकृत हैं ) । कवि सिद्धपाल ने जीक, मन और इद्रियो को वात- चीत राजा कुमारपाल को सुनाई है। देह नामकः-पट्टण ( नगर ) मे आत्मा राजा, बुद्धि महादेवी, मन महामनी और फरिसरण (स्पर्श), रसण (रस), ग्घाण-: (घाण)- लोयण (लोचन) सवण (धवण) ये पाँच प्रधान-यो कथा-चलती है । नमूने---- 5 . . 2 "ज तिलुत्तम-रूव-वक्खित्तु खरण बभु-चउमुहु हुउ. धरह गोरि पद्धगि सकर कंदप्पपरवसु, चलण ज पियाई पण मइ पुरदर ज केसवु नच्चावियर्ड गोठगणि गोवीहिं । इदियवग्गह विपरियो त वन्नियह कईहिं ।। ६१ ।। जो, तिलोत्तमारूप (से) व्याक्षिप्त ( व्याकुल ), क्षण में, ब्रह्मा, चतुर्मुख हुआ, धरै, गोरी को, अर्धाग मे, शकर; कदर्प के परवश, चरण, जो, प्रिया के, प्रणाम करता है, पुरदर; जो, केशव, नचाया गया, गोष्ठ प्रांगन मे, गोपियो से, इप्रियवर्ग का, विस्फुरित, वह वर्णन किया जाता है, कवियो से । 7 !