पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/८६

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। पुरानी हिंदी ८३ . .. (४४ ) बालत्तण, असुइ-विलित्ति देहु दुहकर दसणुग्गम कन्नवेहु । चिततह सच्च विवेय रहिउ मह हियउ होड़ उक्कपसहिउ ।। ८५॥ बालकपन, प्रशुचि (पदार्थों से ) विलिप्त देह, दुमकार, दगनी दांतो) का उद्गम ( निकलना), कर्णवेध, ( इनको) नौत्रते हुए का, सबविवेक-रहित, मेरा, हृदय, होता है उत्कपसहित । (४५) ईसा--विसाय-भय - मोह-माय । मय-कोह-नोह-वम्मह-पमाय " मह सग्गगयस्स वि पिट्टि लग्ग । ववहरय जेव रिणिग्रह समग्ग ॥ ६ ॥ ईर्षा, चियाद, भय, मोह, माया, मद, क्रोध, लोभ, मन्मथ, प्रमाद (ये संब) मेरे स्वर्गगत के, भी, पीठ पर लगे, वोहरे (लेनदार) जने .' शृणो ( कर्जदार ) के, सब। (६) पृ० ४४३--४६१ स्यूलिभद्र कथ छद १-४, १-१४, २२-२५, ३१-३२, ३४-३५, ४०-४५, ४६-६१, ६४-६६ ६५-८२, ८४, ६४, ६७-६८, १००, १०१-१०५ (वाकी प्राकृत है) पाडलिपुत्त के राजा नषम नद के मनी सगडाल ( शकटार ) ने किस प्रकार अपनी ध्रुतधर कन्यानो की सहायता से वरुरुचि का नई कविताएं सुनाकर नद से धन पानावर ' किया, वररुचि गगा से दीनार पाने का घंटक, नंदे का सगडाल पर रोध, सगडाल के पुन सिरिय का पिता को मारना, सिरिय के बड़े भाई न्यूनिमत का कोशा नामक वेश्या से प्रेम, कोशा के उपदेश से श्रमण या वां भी सयम से रहना, आदि का वर्णन बहुत ही अच्छा है। नमूने- . ( ४३ ) जसु वयण विरिणज्जित न सबकु अप्पाण निमिहि दस नमछु । जसु नयणकति जियलज्जभरिण वणवासु पवन्नय' नाइ हरिरा ॥८॥ जिसके बदन से विनिजित, मानो, शशांक, अपने को, निया में, शिता !