पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/८८

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पुरानी हिंदी तीय कुनइ नद, वृत्तात यह शकटाल को, कहता है। विवित्र-म. शिस् । विवित्र, उच्छिलिवि, मुरिणवि पूर्वकालिक । गोमग्ग-म० गोसगं नमेरा । युगः- स्तु, (स्तुति करना) हु ( होम करना ) धातु 'नु वाने प्रयास पात्रवें गण के भी माने जाने चाहिए, प्राकृत श्रुगाड नुनि करना है, तो तथा पद्धतियो मे हुनेत् और हुनुयात् पाता है ( रामचरितमानस में, अनल मह वार बहु ), कृ का कृणोति वेद मे तथा कुणइ प्राकृन में । पइप:-- प्रजल्प ( स०), पसन्निय--प्रमन्निता (1) म०। फिर झटार ने ‘मिसाए प्रादमी भेजकर वररुचि को मायकाल नदी में दीनार ने पा लिया. स्वय निकलवा लिए, सवेरे नद के मामने वरचि ने बहन नृति की और यन चलाया, पर कुछ न मिला । (४६) कोमा ने सोचा कि श्रमण मेरे अनुगग में इतना पगाह मे मुमार्ग मे नगाऊँ। कहा कि मुझे 'धम्मलाभु' से क्या, 'दम्भु लाम' (दाम-नाभ) चाहिए। उसने पूछा 'क्रितता?' कोना ने लाख मांगा । मो मनिब्वे खिज्जमि किनि तुहं झत्ति बच्च नेवाल तह देड मावउ निवड लक्खु मुलु साहुम्म कवरनु सो तहि पत्तउ दिठछु निवु दिन्नइ कावन नेगा । त गोविव वडय तलइ तो बाहुटिउ जवेग 11 उस ( कोमा ) मे कहा गया, वह सनिर्वेद, मत, दुनी हो, तुक, न, झट, जा, नेपालमडल, वहाँ, देवे, श्रावक, नृपति, लार ( 2 ) मान ग. । साधु को, कवल, वह, वहाँ प्राप्त हुप्रा, देवा, नृप, दीनो, का उने उमे, . गप्त करके, खंड के तले मे वह, लौटा वेग में। वुत्त-ग. नव- सं० वज, वाहुडिउ-स० व्याघुटित (पत्रिका भाग २ पृ०२।। पाने में चोर मिले जिन्हे लाख दोनारों के मिलने के जवुन हुए । प्रमग जान । उन्होने छोड दिवा, किंतु फिर नगुन हुए तो अभर देर ही ! तैने लाख दीनार छिपा रक्खे है ? श्रमग ने कवल दिमाग का मदन पोली लकडी में समेटकर छिपाया था। दृशाले की इतनी बागी ने ही । सारा का मोल होगा। मा मदन . .