पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/९१

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८८ पुरानी हिंदी नहीं, इसे गाथावध से कह दो तब माइल्ल धवल ने उसे गाथावध से रच दिया। दवसहावपयास दोहयवंधेन प्रासि ज दिछ । तं गाहावधेरण च रइय माइल्लधवलेण ॥ सुरिणरण दोहरत्थ सिग्ध हसिऊरण सुहकरो भणइ । एत्य रण सोहइ अत्थो गाहाबधेन त भरणह॥ यह 'दस्वसहावपयास' गाथा मे अर्थात् प्राकृत मे है । इसमे दो गाथाओ मे गयचक्क अर्थात् 'नयचर' नामक ग्रथ को और तीसरी मे नयचक्र के कर्ता देवसेनदेव गुरु को नमस्कार लिखा है। देवसेन के लिये कवि ने यहां 'गुरु' शब्द का प्रयोग किया है और एक दूसरी गाथा मे लिखा है कि देवसेनयोगी के चरणो के प्रसाद से यह ( मुझे ) प्राप्त हुना। इससे स्पष्ट है कि नयचक्र (जो लघुनयचक्र कहलाता है ) के कर्ता देवसेनसूरि से माइल्ल धवल का निकटस्थ गुरु-शिष्य सबंध था, परपरागत नहीं । देवमनमूरि ने 'भीवसग्रह' नथ मे अपने को श्रीविमलसेन गणधर का शिप्य कहा है और 'दर्शनसार' के अत में लिखा है कि धारानगरी मे निवास करते हुए पार्श्वनाथ के मदिर मे स० ६६० मै माघ शुदि दशमी को यह अथ रचा। यह सवत् विक्रम संवत् ही है क्योकि धारा (मालवा प्रात) मे यही प्रचलित था और दर्शनसार की अन्य गाथाओ ये जहाँ जहाँ सवत् का उल्लेख दिया है वहाँ वहाँ धिक्कमरा अस्स मरणपत्तस्म' पद देकर पिक्रम सवत् ही प्रकट किया गया है । यही और इससे २०१३० वर्ष आगे तक ही माइल्ल धवल का काल है। मल्ल धवल के इस कथन पर ध्यान दीजिए कि (१) दव्वसहावपयास 'दोहयवध' मे दिछ था, (२) 'दोहरत्थ' को सुनकर हँसकर शुभकर ने कहा कि इसमे अर्थ नही सोहता, इसे गाहावध मे कहो (३) माइल्ल धवल ने इसे गाहावध में रच दिया । प्रवधचितामणि वाले लेख के उपक्रम मे दिखाया गया है कि 'गाथा' प्राकृत का उपलक्षण है और दोहा अपभ्रश या पुरानो हिदी का, पुरानी हिदी विद्या 'दोहाविद्या' कहलाती थी, और छद चाहे दोहा हो चाहे सोरठा, 'दोहाविद्या' में या जाता था, इसलिये दोहयवध = पुरानी हिंदी और गाहावध - प्राकृत । यदि दोहयबध मे भी वही १ नाथूराम प्रेमी, वही, ३०६ ।