पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/९२

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पुरानी हिंदी ८६ प्राकृत भाषा होती, केवल छद का भेद हाता नो जमकर का नाम चढाने और यह कहने की क्या प्रावग्यकता थी कि यहा त्रयं ना, गाथावैध में भरा दो। दोहरत्य का मुनकर नमन गीघ्र हैन प्रागय यही है कि शुभकर को यह बान सहना कि धम किया गंवारी बोली में क्यों है, क्यो नही यह अपने प्री मनपा भापा प्राकृत मे हो। इनलिए शुभंकर के कहन मे मान करने पुरानी हिंदी के काम का प्राकृतानुवाद कर दिया । बिनम की कमान शताब्दी के प्रत मे दोहावद्ध गुगनी हिंदी के कार हान 1 माण है। माइल धवल ने प्राने मूनत्रय का तर ता किया, उन पडितो की तरह नही चिन्हे नुमोदार जन मानम के में 'भापानिनधमनिमनुल' का महन न हामि भार में अलोकिक चमत्कारपूर्ण प्रय कहा में हो जाय जिन्होंने पार का कल्पिन सम्मत रामचरितमानस बनाकर महा जात ना श्रीरह कहने का साहम किया कि तुलसीदास जी ने उनकी भाषा की। (१) खडी वाली--म्लेच्छभापा। 71 एक समय मैने हिंदी के एक वैयाकरम्प मित्रा चोली उर्दू पर ने बनाई गई है, अर्थात् हिंदी मामारी भाषा यह हनी में कहा था कि मेरे मिव का युग म । में : तात्पर्य यह था कि हि सो को रची दुई पुगनी परिता fit •क अजनापा या पूर्वी वैमाडी, प्रबधी, गजन्यानी, गुगनी :- अर्यात् खडी चोली में पाई जानी है। डी योनी पी-,-7 या वर्तमान हिंदी के प्रारभ थाल के गद्य और पri7777 पडा है कि उर्दू रचना में फामो परो नमन मा :: हिदो बना ली गई है। दमा काग यही : RT - 3 घरों की प्रादेशिक और प्रासोर दनो में रो -" १ कहते है कि यह कान, जो वानर में राम--- : किया गया है, इटावे मे मिना । भी था। देखो पियर्मन. जा is, 2, 3;:. नीताराम, वही, अप्रैल, १९१४ ।