पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/९४

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पुरानी हिंदी नम नागग। प्रागरो॥ मोर उमरावन की कडी धुजाय मारी खेलत शिकार जैसे मृगन में वागगे कहे रामदीन गजसिंह के अगरमिट राखो रजपूती मजबूती पाव मेर लोह मेहताई मागे पातमाही होती समशेर तो छिनाय लेती (२)भूपण की भापा मे मब परिचित है । वह हिद कविता की दी भाषा, पडी भापा, ब्रजभाषा का प्रयोग करता है। किंतु शियाबाटनी कहाँ 'मुगलानियाँ मुखन की लालियाँ' के मलिन होने और बेगमी को विद्या मान है उन छदो मे कुछ छटा मुसलमानी अर्यात् खडी बोली का रवा गाविस गाने के लिये दिया है। मिलानो'-- क)बाजि गजराज शिवराज सैन साजत हो। (ख ) कत्ता की कराकन चात्ता को कटक काटि. (ग) ऊँचे घोर मदर के अदर रहन बारीक (4) उतरि पलग ते जिन दियो ना घरा मे पग० () अदर ते निकसी न मदर को देग्यो द्वार० (च) अतर गुलाब रस चोप्रा घनसार नव० (छ) सोधे के अधार किसमिस जिनपो प्रहार० इन छदो मे कई शब्द, विशेषत क्रियापद, ध्यान देने योर। विस्तारभय से पूरे छद नही दिए जाते क्योकि वे प्रनित । तिन हंद का अतिम चरण है-- 'तोरि तोरि पाछे से पिछोरा मो निचोरि मन्न पई कर (TE TO कवि की भाषा) कहाँ पानी मुक्तो में पाती है (यह पाद्री) । एक यह कवित्त भी देखिए जिनमे भूपा की उमि. का मिश्रण है-- अफजल खाँ को जिन्होंने मशन माग बोजापुर गोलकुटा भारा निना १. हिंदी साहित्य समेलन का मस्करण, १०५५२-१५ ।