पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/९६

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पुरानी हिदी १३ प्रानद पाया बहुन होवह बाट जोबड। धर्मोपदेश किया करते थे' से अब मेरे पृन को पटायो। नन बर्गन रवि लिख तो पूरानी गुजराती (पडी) मे रहा है, किनु जहांगीर की अमित उसने खडी बोली मे दी है-- मित्या भूपन भूप मला तुमै मलइ अही भागचद प्राया। तुम पामिथिइ मोहि सुख सहरियार भगवा तुम पढायो अम्ह पूत . धर्मवात जिउ अचल सुणता तुम्ह पामि तात । प्रागचद कदीम तुन हो हमारे सव ही थकी तुम्ह हम्महि पिया। (४) पूर्वोक्त कवि ऋषभदास ने श्रीहोर विजयसूरिगाम मे श्रीहरिविजय सूरिजी तथा अकवर की मुलाकात का वर्णन किया है जो गुजगती में है। अकबर कह रहा है कि आगरे से अजमेर तक मैंने खभे बनवार है। आपने देखे होगे, प्रत्येक पर पांच पांच सौ हरिणो के मीग मैने लगवाए । इस प्रसग को कवि यो लिखता है- १. भानुचद्र को उपाध्याय पदवी बादशाह के सामने लाहौर में दी गई थी । उसने जहाँगीर और दानियाल की जैन गाम्बो का अन्सान कराया था (वही, पृष्ठ १५३ ) । २. ऐतिहासिक राससग्रह, भाग ४, पृ० १०६ । ३. अकवर प्रतिवर्ष अजमेर मे रवाजा मुईनुद्दीन चिश्ती को ज्यिात को आता था। मार्ग मे जहां पडाव थे वहाँ महल घोर कोन रोग पर 'खभा और कुंआ बनवाया था। ( प्रलदाऊनी, लो रा अनुवाद, जिल्द २, पृ० १७६) । प्रव भी स्थान पान पर खभे या उनके भग्नावशेष दिखाई देते हैं । एका जयपुर मे भागेर जाती सडक पर है, पर दूसरा जयपुर से गुछ ही दूर पूर्व में के किनारे दिखाई देता है । इनपर नांग लगाने की बात न गयो मे ही हैं। ये लश्कर के रास्ता न भूलने के दि मतिर कूच का नगारा वजाने को लिये थे।