पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/९७

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१४ पुरानी हिदी देखे हजूरे हमारे तुम्ह एक सो चउद ( ह ) कीए वे हम्म । अकेके सिह पच से पच पातिग करता नहि वलबच ॥ (५) म० १६०२ की कार्तिक शुक्स एकादशी को भट्ट नारायण ने पत्येक पडित के पुत्र केदार के बनाए वृत्तरत्नाकर पर टीका लिखी। उसने अपने पूर्वपुरुपो का यह पता लिख दिया है-भट्ट नागनाथ, पुन) चागदेव भट्ट, (पुन) भट्ट गोविद रामभक्त (पुन ) भट्ट रामेश्वर विश्वामित्र वश (गोन) रूपी समुद्र का चद्र (पुत्र) अथकर्ता नारायण, काशी मे । वह लिखता है कि जाति, वृत्त दोनो प्रकार का छद केवल संस्कृत मे ही नहीं, कवि की इच्छा से प्राकृत, देशभाषामो में भी होता है । प्राकृत के कुछ । उदाहरण देकर उसने भापा के उदाहरण दिए है । (क) महाराष्ट्र भाषा मे उपजाति छद का उदाहरण- अगा मुरारी भव दुख भारी कामादि वैरी मन हैं थरारी। मी मृढ देवा न करीच सेवा माझा कुठावाँ परिता करावा ॥. (हे मुरारी, भव दु.ख भारी है, काम प्रादि वैरी हैं, इनसे मन कांपता है है देव, मुझ मूड ने प्रापफो सेवा न की, मेरी दुरवस्था को दूर कर)। राम (ख) गुर्जर भाण मे स्त्रग्विणी छद का उदाहरण वित्तते 'संचवू [युक्ततें भोगवू अग्निते होमवू विप्रते आपवू । पापते खडवू कामते दडवू पुण्यते सचबू रामते सेववू ॥ (वित्त का संचय करो, उसे जुगस से भोगो, अग्नि मे होमो, ब्राह्मण को दो, पाप का खडन करो, काम को दडित करो, पुण्य सचय करो, .को सेयो । यदि 'ते' विभक्ति न मानी जाय और मध्यपुरुप का सर्वनाम माना जाय तो 'तुझ से वित्त संचय किया जाय' इत्यादि अर्थ होगा) । (ग) कान्यकुब्जभापा,मे वसंततिलका का उदाहरण--- कन्दरूपजवने तुललोन कृष्ण से कोप काम हमही बहु पीर छोडी । तो भेटि के विरह पीर नसाउ मारी ये भांति इति पठई कठिलात गोपी ।।