पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/९८

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पुरानी हिदी (बहुत अस्पष्ट हैं । काशी के सस्कृतज्ञ पडित ने इमे कानुनभारा कहा है, वस्तुत यह व्रजभाषा और पूर्वी का मिश्रण अर्वान् प्रतिन "वडी वोली' है । आशय यह जान पड़ता है कि काम के रूप को जीतनेवाले कृष्ण, अपने मे लीन गोपो को बहुत पीडा देकर कोप करके नेने नको छोडा मिल के मेरी विरह पीडा नष्ट कर-यो दूतिका भेजो।) (घ) म्लेच्छ और सस्कृत के सकर मे मालिनी, किसी कवि रा- हरनयसमुत्थज्वालवसन्हिज्जलाया रतिनयनजलौघ खाक वानकी बहाया । तदपि दहति चेतो मामक क्या करोगी मदनशिरसि भूय क्या वला पागि लागी॥ ( कामदेव की बात देखिए---पहले उसे शिवजी के तृतीय नेत्र की अग्निज्वाला ने जला दिया, बाकी खाक रही थी, वह रति के प्रांमुग्री ने वह गई । तो भी वह मेरे चित्त को जलाता है ? क्या करेंगी। म मालूम कामदेव के सिर पर फिर यह क्या बला को आग लगी, तर वहकर भी जी उठा !!) कवि ने इसे म्लेच्छभाषा केवन खाक, वाकी और बता शब्दो पर में ही नहीं कहा है, इसकी खडी रचना पर से ऐमा लिखा है। मंगल के पडित की दृष्टि में यह पक्की बोली म्लेच्छो की मापा घी !! हेमचद्र के व्याकरण और कुमारपाल चरित में मे । पाणिनि । 'शोभना खलु पाणिनिना सूत्रस्य कृति " सस्कृत व्याकरण मे जो यश पाणिनि को मिला वह पिनी के मान मे नही था। ऐसा सर्वांगसुदर पूर्ण व्याकरण किनी भाषा मे न बना । यो तो महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री कहते है कि मंजर १. पतजलि, २।३।६६ । २. The Professor's Vcdic Grammar is a unique nor' in so far as he has done it without lanın's ludis Prakriya. He has croived the grammar from inc language itself and is as scientific as lus greit l'rcut. cessor, Pannu --एशियाटिक सोसाइटी, गाल पारि पर सभापति का व्याख्यान, पृ० ६ । ।