पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/९९

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पुरानी हिंदी (मुग्धानलाचार्य) ने अव पाणिनि का सा वैज्ञानिक व्याकरण स्वतन्त्र रोति पर बना दिया है क्तुि उस व्याकरण की रचना पारिणनि के व्याकरण के होने ही मे सभव हुई। विभु अाकाश, समुद्र या विष्णु की तरह पाणिनि के व्याकरण की नाप न ईदृक्ता मे हो सकती है न इयत्ता से। वह वही है। यह नहीं कहा जा सकता कि वह ऐसा है या इतना है ।। जैसे पाणिनि अपने पहले के सब संस्कृत वैयाकरणो का सघात' है, वैसे ही वह अपने पिछले मव वैयाकरणो का उद्गम है। अपने से पहले जिन वैयाकरणो का नाम उसने, मतभेद दिखाने के लिये या पूजार्थ,' ले दिया उनका नाम तो रह गया, वाकी के नाम तक का पता नही । पूर्वाचार्यों की जो सज्ञाएं उमने प्रचलित समझकर ले ली वे रह गई , बाकी पुराने सिक्के पाणिनि की नई टकसाल को मोहरो के आगे न 'मालूम कहाँ व्याकरणो का एकदम अभाव देखकर कोई यह कल्पना करते है कि पारिणनि शास्त्रार्थ मे जिन वैयाकरणो को हराता गया उनके ग्रथो को जलाता गया। कोई कहता है कि शिवजीके हुकार- वन से, जो, जैसा कि आगे कहा गया है, पाणिनि के दुर्वल पक्ष की हिमायत पर चले गए। पहले के १. प्रापिशलि ६१६२, 'काश्यप १।२।२५, गार्य ८३२०, गालव ७.१।७४, चाक्रवमरण ६।१।१३०, भारद्वाज ७।२।६७, शाकटायन ३।४।१११, शाकल्य १1१1१६, सेनक ५१४१११२, स्फोटायन ६।१।१२३, उत्तरी ( उदीचाम ) ४११।११३, कोई ( एकेषा ) ८।३।१०४, पूर्वी (प्राचाम् ) या पुराने ४।१।१७ । २. वर्ण वाहु पूर्वसूने ( भाष्य, द्वितीय आह्निक ) व्याकरणातरे वर्णा पाक्षराणीति वचनात् (कैयट), आगो नाऽस्त्रियाम् ( १३१२०) आडिति टासज्ञा प्राचाम् ( कौमुदी ) । प्रथमा आदि विभक्तियो के नाम, समासो के नाम, कृत, तद्धित प्रादि नाम, पुराने है । पूर्वसूत्र निर्देशोऽयम् पूर्वसृनेषु येऽनुबधा न तैरिहत्कार्याणि क्रियन्ते ( पतजलि, प्रौहाप' ७१।१८ पर ) पूर्वाचार्यझै अपि द्विवचने छिति पठिते न चेह क्वचिदन्यौड, प्रत्ययोस्ति । सामान्यग्रहणार्थ च पूर्वसूत्र निर्देशस्तेन पूर्वसूने य प्रौड तस्य ग्रहण भवति ( वही कैयट ) । तदभिष्य सज्ञाप्रमाणत्वात् (पाणिनि मा२।५३) के भाष्य तथा कयट से जाना जाता है कि टि, घु, भ आदि सज्ञाएँ भी पुरानी हैं। अथवा