पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१०३

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बाल्यविवाह विषयक एक चोज आर्यावर्तीय जनों को सर्वथा अनिष्टकारक होने के कारण, वेद शास्त्र, पुराण तो क्या, बाल विवाह की विधि, आशा वा प्रमाण आल्हा तक में नहीं है। शीघ्र बोध के जिम श्लोकों को प्रमाण मान के हिंदू भाई इस घोर कुरीति पर फिदा हैं, जिनके लिए नई रोशनी वाले विचारे काशिनाथ पर फटकेबाजी करते हैं, उनका ठीक २ अर्थ ही कोई नहीं विचारता, नहीं तो उन में तो महा २ निषेध, बरंच भयानक रीति से बाल्य विवाह का निषेध ही है । देखिए साहब ! पुत्र का नाम आत्मा है, और लोक में भी प्रसिद्ध है कि 'भाई तुमको देख लेते हैं तो मानो साक्षात् तुम्हारे पिता हो को देख लेते हैं।' अर्थात् वेद और लोक दोनों के अनुसार पिता और पुत्र की अभिन्नता है। अब शीघ्रबोध के बचनों पर ध्यान दीजिये-'अष्टवर्षा भवेद्गौरी नव वर्षा च रोहिणी' इत्यादि । आठ वर्ष की लड़की गौरी है, और गौरी साक्षात भगवान शिवजी की अर्धागो, जगत की माता है ! और नव वर्ष की लड़की रोहिणी है, जो साक्षात भगवान श्रीकृष्ण चन्द्र जी के बड़े भाई श्री दाऊ जी (बलदेव) को माता है। इस नाते संसार की दादी हुई। भला कौन एसा तैसा दुष्ट नराधम राक्षस होगा जो श्रीमती पाबंती तथा रोहिणी देबी से विवाह ... ... ! अरे राम राम ! करना कसा, करने का नाम ले उसकी जीभ में कीड़े पड़ें ! कहाँ रोहिणी, पार्बती, कहीं क्षुद्र मानव तथा उसके सन्तान ! और हाय रे कुजा (कहाँ) बैताहिक सम्बन्ध ! अरे भाई, ऐसा तो विचार करना महा चांडालत्व है! और लीजिए-'दशवर्षा भवेत्कन्या' । इस लेखे मनुष्यों की कन्या एवं उनके बालकों की भगिनी हुई ! कहते रोएं थर्राते हैं, कोन बेटो बहिन से ब्याह कर लेगा! हाँ, 'ततश्चौद्धं रजस्वला' तिसके (दश वर्ष के) ऊपर जब रजस्वला होय (हो होगी बारहें तेरहें वर्ष) तब ब्याह के योग्य होगी ! हां, इतना विचार रखो, रजस्वला का छुना तक आर्य रीति के विस्त है। इस वाक्य के न मानने से यह होगा कि बीच ही में, अर्थात् दश वर्ष के लगभग "" होने से रजस्वला धर्म, जो सृष्टि क्रमानुसार बारह तेरह वर्ष में होता है, सो बीच ही में अर्थात ग्यारहें ही साढ़े ग्यारहें वर्ष कुद पड़ेगा। इससे बिचारी कन्या की रजस्वला संज्ञा हो जायगी। अर्थात थी वास्तव में कन्या पर मां बाप ने जबरदस्ती रजस्वला बनाया। इस स्वभाव विरुद्ध कम वालों के हक में भी काशिनाथ जी ऊपर वाले श्लोक को पुष्टि करते हैं-'माता चैव पिता चव ज्येष्ठ भ्राता तथव च'। दयानन्द स्वामी 'तथानुजः' और जोड़ते हैं, सो भी ठीक है। ब्याह के तमाशे खूब छोटे लड़के ही देखते हैं । बरंच हमारी राय लीजिये तो पुरोहित भी, क्योंकि पढ़े न समझे, अपने भ्रम में विचारे यशान से पाप करा औ बर कन्या का जन्म नशावै ! 'ते सर्वे नरकं यान्ति दृष्ट्वा कन्यां रजस्वलां' । अब कही, श्री काशिनाय भट्टाचार्य का दोष है कि गप्पूनाथ भ्रष्टाचार्य हिंदुस्तानियों का गदहपन है ? ____खं. ५, सं० ११ (जनवरी ह० सं० २)