पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१०५

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इनकमटैक्स ] हजरत ! यह उरद का दोष है। आप हो उसे सनमत समझिये । किष्किधा को बंदरियों ने श्री सीताजी के सौन्दर्य में इतना दोष निकाला था कि उनके दुम नहीं है ! यही लेखा एडिटर करता है ! हम लोग इसी लिये सरकार से प्रार्थी हैं कि यह फरेबी कवहरी से उठ जाय तो प्रजा का अरिष्ट दूर हो। ऐसे बुद्धि शत्रुओं से शास्त्रार्य करना व्यर्थ है जो कल को कहेंगे, नागरी कविता में उरद की भांति स्वाभाविक दुष्कर्मों का वर्णन नहीं होता। आगे से हमारे पाठक क्षमा करें, हम ऐसे प्रमादियों का उत्तर, यदि कोई विचारणीय विषय न होगा तो, बहुत कम देंगे । जो मूर्ख ... उरद की प्रशंसा और वेद से ले के आल्हा तक को आधार सर्वगुणागरी नागरी देवी की निंदा को केवल निज का विषय समझता हो बोर निरर्थक हा हा ठी ठी में देश सेवा गिनता हो, उसकी बकवाद पर ध्यान देना मिष्फल है। योग्य समझेंगे तो फिर कभी । खं० ३, सं० ११ (जनवरी ह. सं० २) इनकमटैक्स यदि इस शब्द का यही अर्थ है कि "आमदनी पर महसूल" तो न जाने हमारी सरकार ने हम लोगों की किस आय की वृद्धि देखी है जो यह दुःखद कर बांधा है! पुराने लोगों से सुनते हैं कि "उत्तम खेती मध्यम बान, अधम चाकरी भीख निदान" पर इस काल में यह कहावत पूर्ण रूप से उलट गई है। खेती की दशा पर हमें कछ लिखने की बावश्यकता नहीं है। जो चाहे दिहात में जाके देख ले, बिचारे कृषिकारों के बारहों मास दिनरात के कठिन परिश्रम करने और 'नीर नारि भोजन परिहरई' का ठीक नमूना बनने पर भी पेट भरना कठिन हो रहा है। क्या जाने किस भविष्यत् ज्ञानी कवि ने आजकल की दशा पहिले से सोच के मद्य और विषपान करने के बराबर ही हल-ग्रहण को भी त्याज्य समझा हो, और "हालाहल हलाहलम्" लिखा हो । ___उससे उतर के व्यापार समझा जाता था, सो कुछ कहना ही नहीं। हर शहर के प्रत्येक रुज़गारी की दशा सरकार को हम यों नहीं समझा सकते, जब तक न्याय दृष्टि से स्वयं कुछ दिन किसी बाजार का वह गुप्त रूप न देखै ! हम जितनी बड़ी २ दुकानें देखते हैं, सभी भांय २ होती हैं। जिन्होंने हजारों रुपया अटका दिया है, उनको भ्याज भी कठिन हो रहा है। दिवाले निकलना खेल सा हो गया है। अमीर कहाते हैं वे फी सैकड़ा दो तीन से अधिक न होंगे, जिन्हें रोजगार पेटे कुछ मिल रहता है, नहीं