पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/११

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अनुक्रम १. हो ओ ओ ली है! २. बेगार ३. रिशवत ४. दयापात्र जीव ५. कचहरी में शालिग्राम जो ६. गुप्त ठग ७. मार२ कहे जाओ नामर्द तो खुदा ही ने बनाया है ८. देशोन्नति ९. मस्ती की बड़ १.. जरा अब तो आंख खोलिये ११. कान्यकुब्जों ही की सबसे हीन दशा क्यों है १२. मुक्ति के भागो १३ फूटी सहैं आँजी न सहैं १४. बेकाम न बैठ कुछ किया कर १५. वर्षारंभ १६. धूरे के लत्ता बिनै कनातन का डौल बांधे १७. बिस्फोटक १८. हिम्मत राखो एक दिन नागरी का प्रचार होहीगा १९. टेंढ़ जानि शंका सब काहू २०. मतवालों की समझ २१. सबै सहायक सबल... २२. समझदार की मौत है २३. कलिकोष २४. मुनीनां च मतिभ्रमः २५. मुच्छ २६. रक्ताश्रु २७. वर्षारंभे मंगलाचरणम् २८. भारत का सर्वोत्तम गुण २९. बस बस होश में माइए ३०. हुची चोट निहाई माथे mmmm ०४ms, ४४ ४७