पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/११५

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हमारी और फारस वालों की वर्णमाला भर में इससे अधिक अप्रिय, कर्णकटु और अस्निग्ध अक्षर, हम तो जानते हैं, और न होगा। हमारे नोति विदांबर अंग्रेज बहादुरों ने अपनी वर्णमाला में बहुत अच्छा किया जो नहीं रक्खा ! नही उस देश के लोग भी देना सीख जाते तो हमारी तरह निष्कंचन हो बैठते। वहां के चतुर लोगों ने बड़ी दूरदर्शिता करके इस अक्षर के ठोर पर 'डकार' अर्थात् 'डी' रक्खी है, जिसका अर्थ ही डकार जाना, अर्थात यावत् संसार की लक्ष्मी, जैसे बनै वैसे, हजम कर लेना! जिस भारत लक्ष्मी को मुसलमान सात सौ वर्ष में अनेक उत्पात करके भी न ले सके उसे उन्होंने सो वर्ष में धीरे धीरे ऐसे मजे के साथ उड़ा लिया कि हंसते खेलते विलायत जा पहुँची ! इधर हमारे यहाँ दकार का प्रचार देखिए तो नाम के लिये देओ, यश के लिये देको, देवताओं के निमित्त देतो, पितरों के निमित्त देओ, राजा के हेतु देओ, कन्या के हेतु देआ, मजे के वास्ते देओ, अदालत के खातिर देओ, कहां तक कहिए, हमारे बनबासी ऋषियों ने दया और दान को धर्म का अंग हो लिख मारा है। सब बातों में देव, और उसके बदले में लेव क्या ? झूठी नामवरी, कोरी वाह वाह, मरणांतर स्वर्ग, पुरोहित जी का आशीर्वाद, रुजगार करने की आज्ञा वा खिताब, क्षणिक सुख इत्यादि । भला देश क्यों न दरिद्री हो जाय ? जहां देना तो सात समुद्र पार वालों तथा सात स्वर्ग वालों तक को तन, मन, धन, और लेना मनमोदक मात्र ! बलिहारी इस दकार के अक्षर को ! जितने शब्द इसमें पाइएगा, सभी या तो प्रत्यक्ष ही विषवत, या परंपरा द्वारा कुछ न कुछ नाश कर देने वाले ! दुष्प , दुःख, दुर्दशा, दास्य, दौर्बल्य, दंड, दंभ, दर्प, द्वेष, दानव, दर्द, दाग, दगा, देव, ( फारसी में राक्षस ) दोजख, दम का आरज, दरिंदा ( हिंसक जीव ) दुश्मन, दार ( शूली ) दिक्कत इत्यादि सैकड़ों शब्द आप को ऐसे मिलेंगे जिनका स्मरण करते ही रोंगटे खड़े होते हैं ! क्यों नहीं, हिंदी फारसी दोनों में इस अक्षर का आकार हंसिया का सा होता है, और बालक भी जानता है कि उससे सिवा काटने चीरने के और काम नहीं निकलता । सर्वदा बंधन रहित होने पर भी भगवान का नाम दामोदर क्यों पड़ा, कि आप भी रस्सी से बंधे और समस्त बृजभक्तों को दइया २ करनी पड़ी ? स्वर्ग बिहारो देवताओं को सब सामर्थ्य होने पर भी पुराणों के अनुसार सदा दनुज कुल से क्यों भागना पड़ा ? आज भी नए मत वालों के मारे अस्तित्व तक में संदेह है ! ईसाइयों की निय गाली खाते हैं। इसका क्या कारण है ? पंचपांडव समान वीर शिरोमणि तथा भगवान कृष्णचंद्र सरीखे रक्षक होते हुए द्रुपदतनया को केशाकर्षण एवं वनवास आदि का दुःख सहना पड़ा। इसका क्या हेतु ? देशहितैषिता ऐसे उत्तम गुण का भारतवासी मात्र नाम तक नहीं लेते ? यदि बोड़े से लोग उसके चाहने वाले हैं भी तो निर्बल, निर्धन, बदनाम ! यह क्यों ? दंपति