पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/११९

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बालक] प्रीति करे उसके गुण दोष कुछ न देख के यह भी प्रीति करेंगे। ईसाइयों के यहां भी इस शब्द की महिमा है। क्योंकि मसीह को खुदा का बेटा मानते हैं। ईसा ने स्वयं कहा है कि स्वर्ग का राज ऐसों ही के लिए है। हमारी समझ में संसार का राज भी ऐसों ही के लिए है। क्या जब किसी से आप निष्कपट हो के कहेंगे कि 'हम तो आप के लड़के हैं। तो वुह अपनी सामर्थ्य भर आपके हितसाधन में तत्पर न होगा? हम तो जानते हैं देवस्वभाव वाला पुरुष इस मंत्र से अवश्य हो बरम्बहि हो जायगा ! फिर यदि हम कहें कि बालकों का नाम, रूप, गुण, स्वभाव सभी मानन्दमय हैं तो क्या झूठ है ! दुख का तो इनके पास एक दिन भी गुजर नहीं। कोई खिलोना इलोना टूट गया, अथवा खाने को न मिला तो घड़ी भर रो लिए, जहाँ दूसरी ठौर चित्त चल दिया, फिर मगन के मगन ! बुद्धिमानों का सिद्धान्त है कि दुःख पाप का फल है, उस पाप का वे नाम भी नहीं जानते। फिर इनसे और दुःख से क्या मतलब ! कभी २ यह किसी मनुष्य अथवा बिल्ली अथवा कुत्ता के पिल्ले को छुरी आदि भी मार दें, कभी कोई बहुमूल्य वस्तु भी नष्ट कर दें तो भी यह निर्दोष ही है ! कभी किसी पर मलमूत्र कर दें तो भी निरपराध ही हैं ! क्योंकि इन्होंने तो ऐसा काम क्रीड़ा मात्र के लिए किया है ! इन्ही कारणों से सर्कार भी इन्हें दण्ड योग्य नहीं ठहराती। बहुधा दुष्ट पुरुष या स्त्रियां गहने के लोभ अथवा अपने व्यभिचार को बदनामी के डर से इन दयापात्रों पर राक्षसत्व दिखलाते हैं। उनको हमारी न्यायशीला गवर्नम्पेंट दंड भी ऐमा ही कठिन देती है जो दूसरे चोरों और जारों को नहीं मिलता। हमारी समझ में यदि ऐसे माता पिताओं को भी कुछ दंड दिया जाय जो अज्ञान बालकों को पहिराय ओढ़ाय के बिना तकवैया छोड़ देते हैं । इसी प्रकार ऐसे लोगों को भी सजा ठहरा दी जाय तो कामवती बाल विधवाओं के पुनर्विवाह में बाधक होते हैं तो सोने में मुगंध हो जाय । व्यभिचार, चोरी और और ऐसा ही कुकर्म तो स्त्री पुरुष करें, प्राण जाय बिचारे दूध के फोहों का!! ऐसे पापियों को तो कुत्तों से नुचवाना भी अयुक्त नहीं है। फांसी मादि तो सार की कोमलचित्तता है ! हमारे जगत्मान्य महषियों ने भी बाल हत्यारों को आततायी कहा है और 'माततायि वधे दोषः' यह आज्ञा दी है। ईश्वर ने भी हमको भविष्य का ज्ञान कदाचित् इसीलिए नहीं दिया कि यदि हम जान लेंगे कि यह लड़का बड़ा होने पर अयोग्य होगा तो उसका संभार एवं प्यार न करेंगे । हमारी इन सब बातों का तात्पर्य यह है कि ऐसे निष्पाप, प्रेममय, दयापात्रों की भलाई पर ध्यान न देना देशहितषिता के विरुद्ध है, बरंच मनुष्यता से भी दूर है। अतः सामर्थ भर सबको तन मन धन से इस नई पौध को उत्तम पथगामी, उद्योगशील, स्वत्वाभि- मानी बनाने का और आर्य जाति के अनाथ बालकों को आर्यधर्मद्वेषि पादरियों की रोटी खा के जन्म भर के पछिताने से बचाने का पूर्ण प्रयत्न करते रहना चाहिए। हमारे कानपुर में तो जैसे हिंदुओं की गौशाला में लाखों गौएँ पलती हैं वैसे ही मुसल- मानों की बनापशाला में करोड़ों मातृपितृ हीन बालकों की रोटी चलती है। यदि