पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१३७

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भारत पर भगवान की अधिक ममता है। ११५ हैं तो बराबर वालों को हर बात में नीचा दिखा के, हर एक को खरी सुना के, इधर को उधर लगा के और दूसरों में जूता चलवा के, क्या एक तरह के मस्त नहीं हो जाते ? जो देश हितैषी हैं तो बड़ी २ सभाओं में बड़े २ व्याख्यान दे के, बड़े २ पत्रों में बड़े २ लेख छपवा के, बड़े २ चंदे एकत्र करके, गोशाला पाठशाला नाटयशाला चिकित्सालय देवालय इत्यादि स्थापन करके, अपने चित्त में स्वर्ग सुखानुभव कर सकते हैं। यदि निरे स्वार्थी हुए तो बड़े २ राजपुरुषों की चुटकी बजा के, बड़े २ खिताब पा के, इनाम पा के, वा गरीबों को नली काट के, अमीरों की आँखों में धूल झोंक के, दुनिया का करे पर येन केन प्रकारेण अपनी टही जमा के, 'पुलक प्रफुल्लित परित गाता' हो सकते हैं। कहां तक कहिए, धरती पर जितने जंगल, पहाड़, नदी, समद्र और शरीर में जितनी उमंगे तरंगे हैं, सभी के संसर्ग में एक प्रकार का मना है और वह मजा पूर्ण रूप से केवल जवानों को मिल सकता है। यद्यपि किसी बात का व्यसन पड़ जाना बुरा होता है, विशेषतः काम क्रीड़ा, अपव्यय, मादक सेवनादि का व्यसन जीते ही जी एक दिन नर्क भुगवाता है, पर तो भी इस उसर में जितने भला या बरा. कुछ न किया उसने भो कुछ न किया। एक दिन मरना अवश्य है, और लोगों ने कहा है कि जिंदगी चार दिन की है। इसका अर्थ हमारी समझ में यह है कि एक लड़काई के दिन, दूसरे युवा के दिन, तीसरे बुढ़ापे के दिन, चौथा मरने का दिन, इनमें पहिले और तीसरे दिन तो कुछ हई नहीं, दूसरे ही दिन में जो कुछ हो सकता है । उसी में कुछ निंदा व स्तुति के काम कर चलना चाहिए । 'चाल वह चल कि पसे मगं तुझे याद करें । काम वह कर कि जमाने में तेरा नाम रहे ।' धन्य है उन पुरुष रत्नों को, जो देश हित और निज जाति हित में कुछ नाम कर जाते हैं । धिक्कार है उन नराधर्मों को, जो स्वार्थ के लिये पराया अनिष्ट उठाते डूब नहीं मरते । महा महा धिक्कार है उन्हें जो केवल भप, निंदा, मैथुन और आहार ही में पशुओं की भांति, युवावस्था गर्वा कर, अपने तुच्छ जीवन को समाप्त कर देते हैं। नर जन्म पा के, जवानो के बाग में भा के, जिसने कुछ भी सैर न देखो वह हियोकपार का अंधा नहीं तो क्या है ? । खं० ४, सं० ६ (१५ जनवरी, ह. सं०३) भारत पर भगवान की अधिक ममता है ___ यद्यपि उनका नाम जगदीश्वर है, वे अकेले एक देश वा एक जाति के ही ईश्वर नहीं हैं। सकल सृष्टि पर उनकी कृपा दृष्टि आवश्यक है । एक बार वे सभी को पूर्णो- प्रति न दें तो पक्षपाती कहावें । इतिहासवेत्ताओं को यह बात प्रत्यक्ष है कि एक दिन भूमंडल भरे में आर्यों की जयध्वजा उड़ती थी। एक समय यवनों को फतेह का नकारा