पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१४०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण अंधावको कौन समझे लेता है। यदि सब को समझाना मात्र प्रयोजन है तो सीधी २ गम लिखिए। कविता के कर्ता और रसिक होना हर एक का काम नहीं है। उन विचारों की चलती गाड़ी में पत्थर अटकाना, जो कबिता जानते हैं, कभी अच्छा न कहेंगे । बृजभाषा भी नागरी देवी की सगी बहिन है, उसका निज स्वत्व दूसरी बहिन को सौंपना सहृदयता के गले पर छुरी फेरना है। हमारा गौरव जितना इसमें है कि गध की भाषा और रक्खें, पद्य की पौर, उतना एक को बिल्कुल त्याग देने में कदापि नहीं। कोई किसी को इच्छा को रोक नहीं सकता। इस न्याय से जो कबिता नहीं जानते के अपनी बोली चाहे खड़ी रक्खें चाहे कुदायें, पर कवि लोग अपनी प्यार को हुई बोली पर हुकुम चलाके उसकी स्वतन्त्र मनोहरता को नाश नहीं करने के। जो कबिता के समझने की शक्ति नहीं रखते वे सीखने का उद्योग करें। कवियो को क्या पड़ी है कि किसी के समझाने को अपनी बोली बिगाड़ें। खं० ४, सं० ७ और ८ ( १५ फरवरी और मार्च, १० सं० ४) परीक्षा यह तीन अक्षर का शब्द ऐसा भयानक है कि त्रैलोक्य की बुरी बला इसी में भरी है। परमेश्वर न करे कि इसका सामना किसी को पड़े ! महात्मा मसीह ने अपने निज शिष्यों को एक प्रार्थना सिखाई थी जिसको आज भी सब क्रिस्तान पढ़ते हैं। उसमें एक यह भी भाव है कि 'हमें परीक्षा में न डाल बरंच बुराई से बचा' । परमेश्वर करे सब की मुंदी भलमंसी चली जाय, नहीं तो उत्तम से उत्तम सोना भी जब परीक्षार्थ अग्नि पर रक्खा जाता है तो पहिले कांप उठता है, फिर उसके यावत् परमाणु सब छितर बितर हो जाते है । यदि कही कुछ खोट हुई तो तो जल ही जाता है, घट जाता है । जब जड़ पदार्थों को यह दशा है तब चैतन्यों का क्या कहना है ! हमारे पाठकों में कदाचित कोई ऐसा न होगा जिसने बाल्यास्वथा में कहीं पढ़ा न हो। महाभय उन दिनों का स्मरण कीजिए जब इम्तहान के थोड़े दिन रह जाते थे। क्या सोते जागते, उठतें, बैठते हर घड़ी एक चिन्ता चित्त पर न चढ़ी रहती थी ? पहिले से अधिक परिश्रम करते थे तो भी दिन रात देवी देवता मनाते बीतता था। देखिए, क्या हो, परमेश्वर कुशल करे ! सच है यह अवसर ही ऐसा है। परीक्षा में ठीक उतरना हर किसी के भाग में नहीं है ! जिन्हें हम आज बड़ा पंडित, बड़ा धनी, बड़ा बली, महा देश हितैषी, महा सत्यसंध, महा निष्कपट मित्र समझे बैठे हैं, यदि उनको ठीक २ परीक्षा करने लगे तो कदाचित् फी संकड़ा दो ही चार ऐसे निकलें जो सचमुच जैसे बनते हैं वैसे ही बने रहें । वेश्याओं के यहां यदि दो चार मास आप की बैटक रही हो