पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१४७

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१२५ मालमे तसबीर ] हैं कि महात्मा मुहम्मद ने कहीं यह आज्ञा न दी होगी कि बिना मतलब झूठ मूठ छेड़खानी करके अन्य धर्मियों को कुढ़ाओ और खामखाह दो समाजों का चित्त फाड़ो। इसके सिवा यह भी सब जानते हैं कि हिंदू धर्म में गाय की रक्षा परम धर्म है और मुहम्मदीय धर्म मे यह बात कही नहीं लिखी कि गाय के प्राण लिए बिना धर्म रही नहीं सकता। फिर गोरक्षा का विरोधी बनना, हिंदुओं को निष्प्रयोजन आत्मपीड़ा देना और हिंदू मुसलमानों में फूट फलाने के सिवा और क्या फल देगा। जब गोरक्षा का कोई बंदोबस्त होता है तब आलमे तसबीर में उसके खिलाफ जरूर लिखा जाता है और बहुत से हिंदू भाई हमारे पास आ के करुणा के साथ कहते हैं कि जबाब लिखो। पर हमने कई बार देखा है कि यहां के लोगों को दया और धर्म केवल दो एक दिन के लिए होता है। पीछे से अपने कामों में थोड़ा सा भी हर्ज करके कोई काम करना नागवार हो जाता है और यह तो कभी न देखा न सुना कि किसी पर, परमेश्वर न करे, कोई आफत आवे भौर कोई उसका शरीक हो। यही समझ के हम सदा अपने फरियादी भाइयों से कह देते रहे हैं, नाहक तकरार लेने से क्या होगा, तुम गोशाला और गोरक्षिणी सभा कायम कर दो, सब बातों का जवाब यही है और सच भी यही है । मिर्बल निस्सहाय ब्राह्मण को तकरार लेना नहीं सोहता। इस बार छः अप्रैल के आलमे तसबीर को भी हम जवाब नहीं देते, केवल एक नगर में रहने के कारण, साधारणतः समझाए देते हैं कि ऐसे लेखों से कोई लाभ नहीं है। गोएं बचेंगी तो मुसलमानों को कड़वा दूध न देंगी। कई शहरों में बहुत से प्रतिष्ठित और विद्वान मुसलमान गोरक्षा में शरीक हैं । उनको कोई पाप नही लग गया बरंच अपने हमवतनो (स्वदेशियों) की सहायता का पुन्य ही होता है। सरकार भी गोबध गुप्त रोति से करती है और आज तक कभी गोरक्षा पर कहीं अच्छे लोग नही लड़े। फिर कभी शरीफ मुसलमान गो मांस लोलुप नहीं होते। फिर आप ही व्यथं बाद क्यों करते हैं ? आप फरमाते हैं "इस हफ्ते मे चंद हिंदू गोरक्षिणी सभा पर बाजार बाजार लेक्चर देते फिरते हैं । पुरजोश अलफाज से हिंदुओं की सुतवज्जेह करते हैं कि तुम गाय के जबोहे में हाजिर हो।" जब कि गोरक्षा का उपदेश देना और उसका यत्न करना हिंदुओं के धर्म का मूल है, और सरकार की मनशा है कि तब लोग अपने धर्म की रीति निद्वंद्वता से करें एवं इसमें किसी अन्य धर्म की निंदा व हानि नहीं होती तो बाजार २ लेक्चर देने में कौन पाप है। रहा पुरजोश अल्फाज, सो जहां तक देखा गया है किसी को ल्येक्चरों से किसी को क्या होगा। बिचारे हिंदी उरदू के लेखों से देख-दाख के कुछ कह सुन लेते हैं । जिसे कुछ दया धर्म का ख्याल है वुह ययासामर्थ्य कुछ चंदा दे देता है । और यदि अच्छा लेक्चर हो, उसके कथन से लोगों को पूरी उमंग हो जाय, तो अपनी सामयं से बाहर व्याह-रात की तरह कुछ लोग बहुत सा रु० दे गुजरें इसके सिवा गोरक्षा के जोथ का फल ही क्या हो सकता है । सो भी आज तक देखा सुना महीं जाता फिर लाने के साथ 'पुरजोथ अल्फाज' का हम नहीं समझते क्या अर्थ है ?