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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

प्रतापनारायण-ग्रन्थावली] से काम में लाना बुरा ही फल देता है । हम ब्राह्मण है तो टीका ( तिलक ) और चोटी सुधारने में घंटों बिता देते हैं । यह काम स्त्रियों के लिए उपयोगी था। हमे चाहिए था, वास्तविक धर्म पर अधिक मोर देते । यदि हम क्षत्री हैं तो टंडा बखेड़ा में पड़े रहते हैं । यह काम चाहिए था शत्रुमो के साथ करना, न कि आपस में। यदि हम बश्य हैं तो केवल अपना ही टोटा (घटी) या नफा विचारेगे। इससे सौदागरी का सच्चा फल नहीं मिलता । यदि हम अमीर हैं तो सैकड़ों रुपया केवल अपना टिमाक बनाने में लगा देंगे, टेसू बने बैठे रहेगे । इससे तो यह रुपया किसी देश हितकारी काम में लगाते तो अच्छा था। पढ़े लिखे हैं तो मतबाद में टिलटिलाया करेंगे! कोई काम करेंगे तो अंटसंट रीति से, सरतारे होंगे तो टाल-मटोल किया करेंगे। इस ऊटपटांग कहानी को कहां तक कहिए, बुद्धिमान विचार सकते हैं कि जब तक हमारी यह टेंव न सुधरेगी, जब तक हमारे देश में ऐसी ही टिचर फैली रहेगी, तब तक हमारे दुख दरिद्र भी न टलेंगे। दुर्दशा यों ही टेंटुआ दबाए रहेगी। हमें अति उचित है कि इसी घटिका से अपनी टूटी फूटी दशा सुधारने में जुट जायं । विराट भगवान के सच्चे भक्त बने । जैसे संसार का सब कुछ उनके पेट में है वैसे ही हमें भी चाहिए कि जहां से जिस प्रकार जितनी अच्छी बातें मिलें, सब अपने पेट : टिारे में भर लें और देश भर को उनसे पाट दें! भारत- वासीमात्र को एक बाप वे बेटे की तरह प्यार करें। अपने २ नगर में नेशनल कांग्रेस की सहायक कमेटी कायम करें। ऐटी कांग्रेस वालों की टांय पर ध्यान न दें। बस, नागर नट की दया से सारे अभाव झट पट हट जायंगे और हम सब बातों में टंच हो जायंगे ! यह 'टकार' निरस सी होती है, इससे इसके सम्बन्धी आर्टिकल में किसी नट- खट संदरी की चटक मटक भरी चाल और गालो पर लटकती हुई लट, मटकती हुई गंखों के साथ हट ! अरे हट ! को बोलचाल का सा मजा तो ला न सकते थे, केवल टटोल टटाल के थोड़ी सी एडीटरी की टेंक निभा दी है ! आशा है कि इसमें की कोई बात टेंट में वोंस रखियेगा तो टका पैसा गुण ही करेंगी ! बोलो टेढ़ी टांग वाले को जै! खं० ४, ११ ( १५ जून ह० सं० ४) पतिब्रता इस नाम का हमारे यहां सदा से बड़ा गौरव है। हमारे वेद-शास्त्र पुराणों में सहस्रों वचन पतिव्रताओं की महिमा के हैं। हमारी परम पूज्या-जगदंबा श्री पार्वतीजी, श्री सीताजी, श्री अनुसूया जी इत्यादि का बड़ा महत्व विशेषतः इसी कारण है कि वे पतिव्रता थी। निश्चय स्त्री के लिए पतिव्रत से बढ़ के कोई धर्म नहीं है, न पति से बढ़ कर कोई देवता है। अद्यापि साधारण स्त्रियां बोला करती है कि "हमार पति परमेश्वर