पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१५६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

११४ [प्रतापनारायण-ग्रंथावली को तो सभाएं भी है, अखबार हैं, पुस्तकें भी हैं, पर स्त्रियों के लिए उपदेश का कोई चाल ही नहीं है। हम आशा करते हैं कि श्रीमती हेमन्तकुमारी देवी (रतलामवासिनी) अपनी 'सुगृहिणी' नामक पत्रिका मे पतिव्रत पर अधिक जोर देंगी जिसमें सर्वसाधारण स्त्रियों को वास्तविक लाभ हो। फोटोग्राफी आदि की अभी हमारी गृहदेवियों के लिए अधिक आवश्यकता नहीं है। नवीन ग्रंथकारों को भो चाहिए कि जहां और बहुत सी बातें लिखते हैं, कभी २ इधर भी झुकते रहें। व्याख्यानदाता लोग कभी २ स्त्रियों को भी परदे के साथ स्त्री धर्म की शिक्षा दिया करें। यही सब पतिब्रत प्रचार की युक्तियां हैं। इधर हमारे गृहस्थ भाइयों को समझना चाहिए कि दोनों हाथ ताली बजती है । उन्हें पतिव्रता बनाने के लिए इन्हें भी स्त्रीब्रत धारण करना होगा। एक बात और भी है कि स्त्रियां अभी विशेषतः मूर्ख हैं। अतः साम, दाम, दंड, भेद से काम लेना ठीक होगा। निरे न्याय और धर्म से वे राह पर न आवेंगी। ऐसी युक्ति से बर्तना चाहिए कि वे प्रसन्न भी रहें और कुछ हरती भी रहें। तभी प्रीत करेंगी। कनौजियो की तरह निरी डंडेबाजी से वे केवल हर सकती हैं, प्रीति न करेंगी। अगरवालों, खत्रियों की भांति निरी स्वतंत्रता सौंप देने से भी वे सिर चढ़ेगी। अतः भय और प्रीति दोनों दिखाना, स्वतंत्र, परतंत्र दोनों बनाए रहना। मौके २ से उन्हें अनुमति और शिक्षा भी देते रहना, और कभी २ उनकी सलाह भी लेते रहना। बस इन उपायों से संभव है कि भारत कन्याए पुनः परिव्रत को ओर झुकने लगेंगी और पतिव्रताओ के प्रभाव से फिर हमारी सौभाग्यलक्ष्मी की वृद्धि होगी। ___ खं०, ४, सं० १२ (१५ जुलाई ह० सं० ४) दबी हुई आग यदि किसी ठौर पर आग लगे, धधक उठ तो हम अनेक उपाय से तुरंत उसे बुझा सकते हैं। पर जो आग किसी वस्तु में दबी हुई सुलग रही हो और कोई उसे बतलाने वाला न हो तो उस अग्नि से अधिक भय है। आजकल परमेश्वर की दया मे हमारे धर्म रूपी भवन के अग्निवत् ईसाई मत प्रत्यक्ष प्राबल्य तो शांत होने के लगभग है, अर अभी ईसाइयों की एक कार्रवाई ऐसी फैली हुई है कि यदि उसका उपाय अभी से कमर बांध के न किया जायगा तो एक दिन दबी हुई आग की भांति वह महा अनिष्ट करेगी। अभी पचास वर्ष भी नही हुए कि हमारे अभाग से भारत में ईसाईपन की आग पूरे जोर शोर के साथ धधक रही थी। माइकेल मधुसूदन दत्त, कृष्णमोहन बनुरजी, नीलकंठ इत्यादि विद्यावानों का स्मरण करके हमको माज तक खेद होता है कि हाय यह लोग यदि हमारे समाज से बहिष्कृत न हो जाते तो कितना उपकार न करते। पर हाय कुछ समय हो ऐसा दुस्समय था कि लोग पढ़ने लिखने के साथ ही पादरियों के जाज्वल्यमान अग्निसमूह में स्वाहा हो जाते थे। परमेश्वर ने बड़ी दया की कि स्वामी दयानंद, बाबू केशवचंद्र, मुंशी कन्हैयालाल आदि पुरुषरत्नों को