पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१५९

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पक्ष यह दो अक्षर और तीन अर्थ का शब्द भी ऐसा उपयोगी है कि इस के बिना कोई काम ही नहीं चल सकता। यदि पक्षी पक्ष जाते रहें तो उसका जोना भारी हो जाय। यदि महीने में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष न हों तो ज्योतिषियों को गणित में बड़ी गड़बड़ो पड़े। यदि किसी का पक्ष करने वाला कोई न हो तो वुह एक पक्ष क्या एक क्षण भी सुख से नहीं बिता सकता। सच पूछो तो मनुष्य का मनुष्यत्व पक्ष ही से है, नहीं तो 'आदमी को भी मयस्सर नहीं इसा होना'। जिसे अपनी बात का पक्ष नहीं उसको किसी बात का ठीक नहीं। बात औ बाप एक होते हैं ( चाहे उरदू में लिख के किसी से पढ़ा देखो! । महाराज दशरथ जी की इतनी प्रतिष्ठा है कि भगवान राम- चन्द्र जी के पिता कहलाते हैं। मनुष्य, क्षत्रिय, राजा, वीर, धीर, धार्मिक लाखों लोग हो गए परदार जी की समता किसी को नहीं हो सकती। इस का कारण, इस अचल कीर्ति का हेतु, केवल यही है कि वे बाचा के धनी थे। उन्हें अपनी बात का पक्ष था-'प्रानन ते सुत अधिक है सुत ते अधिक परान । सो दशरथ दोनो तजे, बचन न दोन्हों जान ।' राम, युधिष्ठिर, हरिश्चंद्र, भीष्म, हम्मीर आदि के जीवन चरित्र देखिए तो यही पाइएगा कि उनकी महान महिमा का कारण यही था कि बड़े २ कष्ट उठाए, बड़ी हानि सही, पर अपने कहे को निबाहा और अपने कामों से जगतवासियों के लिए यह सिद्धांत नियत कर गए कि "विचलित नहिं वाक्यं सजनानां कदाचित्' । हम देखते हैं तो हम संसारी लोगों के औगुणों का ठिकाना नहीं है। यदि सचमुच न्याय किया जाय तो ऐसे लोग बहुत थोड़े निकलेंगे जो कठिन दन्ड के योग्य न हों। और जितने मतवादी हैं, सब कहते हैं कि ईश्वर न्यायी है, पर यह कभी देखने सुनने में नहीं आया कि सो दो सौ पापी पुरुष यथोचित यातना से साथ अपने किए को पहुँचा दिए जायं । इस का कारण क्या है ? यदि हठ छोड़ के विचारिए तो निश्चय हो जायगा कि जगदी- श्वर यह समझ के हमारे दुर्गुणों को देखता हुवा भी हमारे पालन पोषणादि से मुंह नहीं मोड़ता कि यह सब हमारे हैं ! संसार अपने दुराचारों से कब का नाश हो गया होता यदि करूणामय भगवान उसे अपना न समझते। हम पापी हैं चाहे अधर्मी पर परम पिता जानते हैं कि 'कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति'। इस से सिद्ध होता है कि जगत के कर्ता धर्ता को भी अपनी प्रजा का पक्ष है। फिर हम नहीं जानते वुह लोग कितने मूर्ख हैं जिन्हें पक्ष का पक्ष नहीं। हमारा भारत इसी से दिन २ गारत होता जाता है कि यहां के लोगों को अपनी बात का, अपनी जाति का, अपने देश का, अपने धर्म का, अपनी मर्यादा का,अपनी भाषा का पक्ष नहीं है। यह तो सरासर देखते हैं कि ईश्वर न्यायी, समदर्शी, सब कुछ, पर अपने निज भक्तों का पक्ष अवश्य करता है। यहां तक कि पतितपावन अधमोढारण दीनबंधु आदि उसके नाम पड़ गए हैं। हमारे