पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१६२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

१४० [प्रतापनारायण-ग्रन्थावली लोग दुष्व पावेंगे। हम पढ़े-लिखे लोग हैं। प्रतिष्टित कुल के भये उपजे हैं । एक तुच्छ व्यक्ति को नौकरी करके बातें कुबातें सुनेंगे। स्थानान्तरण में चले जायंगे ? दो चार रुपये का मजदूरी करके खायंगे । गुलामी तो न करनी पड़ेगी। पर खटला लिए-लिए कहा फिरेंगे? घर वाली को किसके माथे छोड़ जायंगे ? यही सोच साच के जो पड़ती है सहते हैं । इन सब तुच्छताओं का कारण स्त्री है जिसके कारण हम गिरस्त कहाते हैं, अर्थात् गिरते-गिरते अस्त हो जाने वाला ? भला हम अपनो आत्मा की, अपने समाज की उन्नति क्या करेंगे । एक रामायण में लिखा है कि जिस्समय रावण मृत्यु के मुख में पड़े थे, 'अब मरते हैं, तब मरते हैं' को लग रही थी, उस समय भगवान रामचंद्रजी ने लक्ष्मण जी से कहा कि रावण ने बहुत दिन तक राज्य किया है, बहुत विद्या पढ़ी है, उनके पास जाओ। यदि वे नोति को दो चार बातें बतला देंगे तो हमारा बड़ा हित होगा। हमें अभो अयोध्या चल के राज्य करना है । लक्ष्मणजी भ्रातृचरण की आज्ञा- नुसार गये और अभीष्ट प्रकाश किया। रावण ने उत्तर दिया कि अब हम परलोक के लिये बद्धपरिकर हैं। अधिक शिक्षा तो नहीं दे सकते पर इतना स्मरण रखना कि तुम्हारे पिता दशरथ महाराज बड़े विद्वान और बहुद्रष्टा थे, उन्होंने कैकेयी देवी का व वन मानने के कारण पुत्र वियोग और प्राण हानि सही! और हम भी बड़े भारी राजा थे पर मंदोदरी रानी की बात कभी नहीं मानते थे । उसका प्रत्यक्ष फल तुम देख ही रहे हो । सारांश यह है कि स्त्री को मुंह लगाना भी हानिजनक है और तुच्छ समझना भी मंगलकारक नहीं है । हमारे पाठक समझ गये होंगे कि स्त्रो सम्बन्ध कितना कठिन है। यदि हम इन्ही के वश में पड़े रहें तो किसी प्रकार कल्याण की आशी नहीं है। जन्म भर नोन तेल लकड़ी की फिक्र में दौड़ना होगा । और यदि छोड़ भागे तो भी लोक में निन्दास्पद और परलोक में पापभागी होंगे। इससे उत्तम यही है कि विवाह केवल वर और कन्या ही की इच्छा से होना ठीक है नहीं तो दोनों की जोवन जात्रा में बाधा पड़ना संभव है । ईसाई और मुहम्मदीय ग्रन्थों में लिखा है कि ईश्वर ने आदम को अति पवित्र और प्रसन्न उत्पन्न किया और स्वर्ग की वाटिका में रक्खा था परन्तु जब उसे अकेला समझ कर होवा को साथ कर दिया उसके थोड़े ही दिन पीछे आदम शैतान से धोका खाया, ईश्वर की आज्ञा उलंघन की, और वैकुण्ठ से निकल कर दुनियां की हाव २ में पड़े । जब परमपिता जगदीश्वर की इच्छा से विवाह का परिणाम दह है तो साधारण माता पिता की अनुमति से ब्याह होने पर कोन अच्छे फल की संभावना है? जगत में लाखों मनुष्य ऐसे हैं कि यदि उन्हें घर के धन्धों से छुट्टी मिले तो पृथ्वो का बहुत बड़ा भाग मंगलमय कर दें। पर भवबंधन में पड़े हुए अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं ? ऐसों के लिए स्त्री क्या है ? एक स्वेच्छाचारी सिंह के लिये हाथ भर की जंजीर जो आधी उस अभागी के गले में बंधी हो और आधी खूटा में । हमारे रिषि लोग बहुधा अवि- वाहित थे । महात्मा मसीह भी अविवाहित थे। आज उनके नाम से लाखों आत्माओं का उपकार हो रहा है। यदि वे भी कुटुम्ब की हाव २ में लगे रहते तो इतना महत्व कभी न प्राप्त करते।