पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१६५

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कामपुर और नाटक ] रामाभिषेकादि कई बड़े २ अभिनव ऐसी उत्तमता से क्येि कि किसी से अद्यापि हुए नहीं। पर जब त्रिपाठी महाशय उद्यमवशत: गोरक्षपुर चले गये तब से कई वर्ष तक इस विषय में सूनसान रहीं ! केवल ८२ के सन में प्रताप मिश्र की दौड़ धूप से 'नील देवी' और 'अंधेरनगरी' खेली गई थी! फिर लोगों के अनुत्साह से कई वर्ष कुछ न हुवा। हां, ८५ के सन् में 'भारत दुर्दशा' खेली गई और भारत एनटरटेनमेंट क्लब स्थापित हवा जिसके उद्योग से दो बेर 'अंजामें बदी' नाटक ( फारसी वालों के ढंग का नाटकाभास ) खेला गया ! कुछ आशा की गई थी कि कुछ चल निकलेंगे, पर योड़े ही दिन में मेम्बरों के परस्पर फूट जाने से दो क्लब हो गये ! फूटी हुई शाखा M. A. क्लब के नाम से प्रसिद्ध है और पहली का नाम दो एक हिंदी रसिकों के उत्साह से श्री भारतरंजनी सभा हो गया है ! इसका वृतांत पाठकगण इसके नाम से और प्रताप मिश्र की शराकत से समझ सकते हैं। सिवा इसके श्री बाबू पचनलाल प्रेसीडेंट और बाबू राधेलाल मैनेजर भी उत्साही पुरुष हैं। इन दोनों समाओं को देखा देखी कई क्लब और भी खड़े हुए पर कई उगते ही ठिठुर गये, कई एक आध बेर जाग के सो गये ! जागे तो भी इतना मात्र कि फारसियों की शिष्यता की इतिकर्तव्यता समझ के। सो भी न कर सके । बड़ो भारी छूत इस शहर के लोगों में यह है कि यदि कोई पुरुष अच्छा काम करना बिचारे, और अन्य लोग उसे समझ भी लें कि अच्छा है, तो भी उनके सहायक हो के उन्नति न देगे। अपनी नामवरी के लालच में कुछ सामर्थ न होने पर भी ढाई चावल की खिचड़ी अलग पकावेंगे। इसमे दोनों को ही हानि होती है ! यदि यह समायें एक हो के वा परस्पर सहायता करके सुयोग्य कवियों के बनाए हुए वा बनवा के नाटक खेला करें तो क्या कहना है ! पर कहे कौन ? वर्ष भर से एक A. B. club और हुआ है जिसने कई बेर उलट फेर खाए, अंत में एक परोत्साही रत्न की शरण लेके रक्षित रहा। ९ अगस्त को इस क्लब ने अभिनय किया पर हम यह मुक्त कंठ से कहेंगे कि यदि हमारे प्रिय मित्र श्री भैरवप्रसाद व तन मन धन से बद्धपरिकर न होते तो यह दिन कठिन था। नाटक पहिले पहिल था और भाषा भी उरदू थी, पर पात्रगण चतुर थे, इससे अभिनय सराहने योग्य था इसमें शक नहीं। M. A. club के कई सभाषद नाराज हो के उठ गये। यह अयोग्य किया ! और बहुत से अशिक्षित जन कोलाहल की लत भी दिखाते रहे, पर हमारे कोटपाल अलीहुसेन साहब के परिश्रम और प्रबंध से शांति रही 'सदमए इश्क' और 'गोरक्षा' निर्विघ्न खेला गया। सुनते हैं कि इस क्लब में उत्तमोत्तम नागरी के नाटक भी खेले जाया करेंगे । परमेश्वर इस किंबदंती को सत्य करे। हम अपने सुहृदवर भैरवप्रसाद ( मोलो बाबू) से आशा रखते हैं कि नाटक का असली अमृतरस चरितार्थ करने में सदैव प्रोत्साहित रहेंगे। ख० ५, सं० १ ( १५ अगस्त ह. सं० ४) 1